________________ जैन इतिहास की उत्पत्ति एवं विकास वैदिक देवता इन्द्र को नहीं मानते थे। आर्यो के साथ होने वाले युद्धों से पणि श्रमण संस्कृति के प्रतीक होते हैं। ऋग्वेद में “वातरशना” शब्द द्वारा नग्न मूर्तियों का स्मरण किया गया है। "वातरशना" शब्द का प्रयोग दिगम्बर र्निग्रन्थमुनि के लिए किया गया है। भागवतपुराण में बातरशना मुनियों को वातरशना श्रमण ऋषि कहा गया है।१२ ऋषभावतार का हेतू बातरशना श्रमण ऋषियों के धर्म को प्रगट करना बतलाया गया है। ऋग्वेद में वातरशना ऋषि के साथ ही “केशी' की स्तुति की गयी है जिसका अर्थ इन ऋषियों के प्रधान प्रथम तीर्थकर ऋषभदेव से लगाया गया है।१४ ऋषभ के कटिल केशों की परम्परा जैनमर्तिकला में प्राचीन से अर्वाचीन तक अक्षुण्ण है। जैन पुराणों में भी ऋषभ की जटाओं का उल्लेख मिलता है। शिवमहापुराण में ऋषभदेव को शिव के अट्ठाइस योगावतारों में गिना गया है।१६ साहित्यिक साक्ष्यों की ही भांति पुरातात्विक साक्ष्य भी ऋषभदेव को आदि प्रवर्तक मानते हैं। कंकाली टीले से फ्यूहर को प्राप्त जैन शिलालेव में ऋषभदेव की पूजा के लिए दान देने का उल्लेख है। खण्ड गिरि,उदयगिरि की हाथी गुफा से प्राप्त जैन सम्राट खाखेल के शिलालेख से ऋषभदेव के आदि तीर्थकर होने एंव उनकी मूर्तिपूजा होने के उल्लेख मिलते हैं। सिन्धुसभ्यता से प्राप्त पशुपति की मूर्ति कार्योत्सर्ग मुद्रा में खड़े हुए देवताओं की मुद्रा जैनयोगियों की है। सिन्धुसभ्यता की मुहर पर अंकित देवमूर्ति में एक बैल बना है, सम्भव है कि ऋषभ का यह पूर्व रुप रहा हो, क्योंकि ऋषभ का अर्थ बैल है जो आदिनाथ का चिन्ह है। राधाकमल मुकर्जी शैवधर्म की तरह जैनधर्म का मूल भी ताम्रयुगीन सिन्धु सभ्यता तक मानते हैं। जैन परम्परा बतलाती है कि भारत का इतिहास भोगभूमि की अवस्था से प्रारम्भ होता है। क्रमशः इस अवस्था में परिवर्तन हुआ एंव उस युग का प्रारम्भ हुआ जिसे पुराणकारों ने कर्मभूमि युग कहा है। इस युग को लाने वाले 14 कुंलकर माने गये हैं। ऋषभदेव के समय से ही कर्म भूमि युग में ग्राम,नगर आदि की व्यवस्था हुयी ऋषभदेव ने ही प्रजा को असि,मषी,शिल्प,वाणिज्य,विद्या,कृषि इन षट्कर्मो से आजीविका पालन सिखाया।" इसलिए इन्हें प्रजापति भी कहा गया है। हरिवंशपुराण से ज्ञात होता है कि जब ये गर्भ में थे उस समय देवताओं ने स्वर्ण की दृष्टि की इसलिए उन्हें "हिरण्यगर्भ' भी कहते हैं।२२ इक्षु ग्रहण करने के कारण ऋषभ को 'इक्ष्वाकुवंशीय' कहा गया है। इनके पुत्र भरत चक्रवर्ती के नाम पर ही इस देश .. का नाम भारत वर्ष पड़ा। जैन परम्परानुसार ऋषभदेव की जंघा पर ऋषभ का... चिन्ह था इसलिए ऋषभदेव नाम पड़ा। भगवान ऋषभदेव के लिए शास्त्रों में पदम राया" "पदम भिकखायरे पढमजिणे,पढमतितंधकरे शब्द प्रयोग किये गये हैं। . . जैन परम्पराओं से ज्ञात होता है कि ऋषभदेव के पश्चात जैन धर्म के / प्रवर्तक 23 तीर्थकर और हुए इनमें से कतिपय को छोड़कर अन्यों की ऐतिहासिक