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[ जैन प्रतिमाविज्ञान
की मूर्ति सामग्री का नहीं के बराबर उपयोग किया गया है। अतः बहुत सी महत्वपूर्ण जानकारियाँ उनके लेखों में समाविष्ट नहीं हो सकी हैं । उनके महाविद्या सम्बन्धित लेख में कुम्भारिया के शान्तिनाथ मन्दिर की १६ महाविद्याओं के सामूहिक अंकन का उल्लेख नहीं है, जो महाविद्याओं के सामूहिक चित्रण का प्रारम्भिकतम उदाहरण है । इसी प्रकार जीवन्तस्वामी मूर्ति विषयक लेख में ओसिया की विशिष्ट जीवन्तस्वामी मूर्तियों का भी कोई उल्लेख नहीं है । ओसिया की जीवन्तस्वामी मूर्तियों में अन्यत्र दुर्लभ कुछ विशेषताएँ प्रदर्शित हैं । जिन मूर्तियों के समान इन जीवन्तस्वामी मूर्तियों में अष्ट-प्रातिहार्य, यक्ष - यक्षी एवं महाविद्या निरूपित हैं । शाह के मूर्त उदाहरण मुख्यतः राजस्थान और गुजरात के मन्दिरों से ही लिये गये हैं। शाह ने साहित्यिक साक्ष्यों और पुरातात्विक सामग्री के तुलनात्मक अध्ययन में स्थान एवं काल की दृष्टि से क्रम संगति एवं सामञ्जस्य पर भी सतर्क दृष्टि नहीं रखी है ।
के ० डी० वाजपेयी ने मथुरा की जैन मूर्तियों पर कुछ लेख लिखे जिनमें कुषाणकालीन सरस्वती मूर्ति से सम्बन्धित लेख विशेष महत्वपूर्ण है, क्योंकि जैन शिल्प में सरस्वती की यह प्राचीनतम मूर्ति है । एक अन्य लेख में वाजपेयी ने मध्यप्रदेश के जैन मूर्ति अवशेषों का संक्षेप में सर्वेक्षण किया है। वी० एस० अग्रवाल ने भी जैन कला पर पर्याप्त कार्य किया है, जो मुख्यतः मथुरा के जैन शिल्प से सम्बन्धित है । उन्होंने मथुरा संग्रहालय की जैन मूर्तियों की सूची प्रकाशित की है, जो प्रारम्भिक जैन मूर्तिविज्ञान के अध्ययन की दृष्टि से विशेष महत्व की है । इसके अतिरिक्त आयागपटों एवं नैगमेषी पर भी उनके महत्वपूर्ण लेख हैं । एक अन्य लेख में उन्होंने लखनऊ संग्रहालय के एक पट्ट की दृश्यावली की पहचान महावीर के जन्म से की है ।" अधिकांश विद्वान् दृश्यावली को ऋषभ के जीवन से सम्बन्धित करते हैं । जे० ई० वान ल्यूजे डे- ल्यू की 'सीथियन पिरियड' पुस्तक में कुषाणकालीन जिन एवं बुद्ध मूर्तियों के समान मूर्तिवैज्ञानिक तत्वों की व्याख्या, उनके मूल स्रोत एवं इस दृष्टि से एक के दूसरे पर प्रभाव की विवेचना की गयी है । इस अध्ययनसे यह स्थापित किया गया है कि प्रारम्भिक स्थिति में कोई भी कला साम्प्रदायिक नहीं होती, विषय वस्तु अवश्य ही विभिन्न सम्प्रदायों से अलग-अलग प्राप्त किये जाते हैं, किन्तु उनके मूर्त अंकन में प्रयुक्त विभिन्न तत्वों का मूल स्रोत वस्तुतः एक होता है । देबला मित्रा ने दो महत्वपूर्ण लेख लिखे हैं । एक लेख में बांकुड़ा (बंगाल) से मिली प्राचीन जैन मूर्तियों का उल्लेख है ।" दूसरा लेख खण्डगिरि (उड़ीसा) की बारभुजी और नवमुनि गुफाओं की यक्षी मूर्तियों से सम्बन्धित है ।' लेखिका ने बारभुजी गुफा की २४ एवं नवमुनि गुफा को ७ यक्षी मूर्तियों का विस्तृत विवरण देते हुए दिगम्बर ग्रन्थों के आधार पर यक्षियों की पहचान तथा सम्भावित हिन्दू प्रभाव के आकलन का प्रयास किया है ।
१ वाजपेयी, के ० डी०, 'जैन इमेज ऑव सरस्वती इन दि लखनऊ म्यूजियम', जैन एण्टि०, खं० ११, अं० २, पृ० १-४
२ वाजपेयी, के ० डी०, 'मध्यप्रदेश की प्राचीन जैन कला', अनेकान्त, वर्ष १७, अं० ३, पृ० ९८-९९; वर्ष २८, १९७५, पृ० ११५-१६, १२०
३ अग्रवाल, वी० एस० केटलाग ऑव दि मथुरा म्यूजियम, भाग ३, ज०यू०पी०हि०सो०, खं० २३, पृ० ३५
१४७
४ अग्रवाल, वी० एस०, 'मथुरा आयागपटज', ज०यू०पी०हि०सो०, खं० १६, भाग १, पृ० ५८- ६१; 'ए नोट आन दि गाड नैगमेष', ज०यू०पी०हि०सो०, खं० २०, भाग १ -२, १९४७, ५० ६८-७३
५ अग्रवाल, वी० एस० 'दि नेटिविटी सीन ऑन ए जैन रिलीफ फ्राम मथुरा, जैन एण्टि०, खं० १०, पृ० १-४
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६ ल्यू जे-डे-ल्यू, जे० ई० वान, दि सीथियन पिरियड, लिडेन, १९४९, पृ० १४५-२२२
७ मित्रा, देबला, 'सम जैन एन्टिक्विटीज फ्राम बांकुड़ा, वेस्ट बंगाल', ज०ए०सो०बं०, खं० २४, अं० २, पृ०
१३१-३४
८ मित्रा, देवला, 'शासन देवीज इन दि खण्डगिरि केन्स', ज०ए०सी०, खं० १, अं० २, पृ० १२७-३३
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