Book Title: Jain Pratimavigyan
Author(s): Maruti Nandan Prasad Tiwari
Publisher: Parshwanath Shodhpith Varanasi

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Page 25
________________ प्रस्तावना ] विभिन्न जैन देवों के प्रतिमा लक्षण पर लिखे शाह के कुछ प्रमुख लेख अम्बिका, सरस्वती, १६ महाविद्याओं, हरिनगमेषिन्, ब्रह्मशान्ति, कर्पाद्द यक्ष, चक्रेश्वरी एवं सिद्धायिका से सम्बन्धित हैं ।' इन लेखों में श्वेताम्बर और दिगम्बर ग्रन्थों एवं पदार्थंगत अभिव्यक्ति के आधार पर देवों की प्रतिमा लाक्षणिक विशेषताएँ निरूपित हैं। शाह ने विभिन्न देवों की मूर्ति के वैज्ञानिक विकास का अध्ययन काल और क्षेत्र के परिप्रेक्ष्य में करने के स्थान पर सामान्यतः भुजाओं की संख्या के आधार पर देवों को वर्गीकृत करके किया है । ऐसे अध्ययन से वास्तविक विकास का आकलन सम्भव नहीं है । शाह ने जैन प्रतिमाविज्ञान के कुछ दूसरे महत्वपूर्ण पक्षों पर भी लेख लिखे हैं, जिनमें जीवन्तस्वामी की मूर्ति, प्रारम्भिक जैन साहित्य में यक्ष पूजन, जैन धर्म में शासनदेवताओं के पूजन का आविर्भाव एवं जैन प्रतिमाविज्ञान का प्रारम्भ प्रमुख हैं । जीवन्तस्वामी विषयक लेखों में जीवन्तस्वामी महावीर मूर्ति की साहित्यिक परम्परा की विस्तृत चर्चा की गई है, और अकोटा की गुप्तकालीन जीवन्तस्वामी मूर्ति के आधार पर साहित्यिक साक्ष्यों की विश्वसनीयता प्रमाणित की गई है । यक्ष पूजन और शासनदेवताओं से सम्बन्धित लेख यक्ष-यक्षी पूजन की प्राचीनता, उनके मूर्त अंकन एवं २४ यक्षयक्ष युगलों की धारणा एवं उनके विकास और स्वरूप निरूपण के अध्ययन की दृष्टि से विशेष महत्वपूर्ण हैं । ७ जैन प्रतिमाविज्ञान से सम्बन्धित सभी महत्वपूर्ण पक्षों की विवेचना में साहित्यिक साक्ष्यों के यथेष्ट उपयोग और विश्लेषण में शाह ने नियमितता बरती है । प्रारम्भिक एवं मध्ययुगीन प्रतिमा लाक्षणिक ग्रन्थों के समुचित एवं सुव्यवस्थित उपयोग का उनका प्रयास प्रशंसनीय है । जैन प्रतिमाविज्ञान के कई विषयों पर उनकी स्थापनाएँ महत्वपूर्ण हैं । उन्होंने ही प्रतिपादित किया कि महाविद्याओं की कल्पना यक्ष-यक्षियों की अपेक्षा प्राचीन है और उनके मूर्तिविज्ञानपरक तत्व भी यक्षयक्षियों से पूर्व ही निर्धारित हुए । यक्ष पूजा ई० पू० में भो लोकप्रिय थी और माणिभद्र - पूर्णभद्र यक्ष एवं बहुपुत्रिका यक्षी सर्वाधिक लोकप्रिय थे। इन्हीं से कालान्तर में जैन देवकुल के प्रारम्भिक यक्ष-यक्षी सर्वानुभूति ( कुबेर या मातंग) और afront forसित हुए । गुप्त युग में सर्वानुभूति यक्ष और अम्बिका यक्षी का प्रथम निरूपण एवं आठवीं नवीं शती ई० तक २४ यक्ष-यक्षी युगलों की कल्पना उनकी अन्य महत्वपूर्ण स्थापनाएँ हैं । जीवन्तस्वामी महावीर, ब्रह्मशान्ति यक्ष, कर्पा यक्ष एवं अन्य कई महत्वपूर्ण विषयों पर सर्वप्रथम शाह ने ही कुछ लिखा है । जैन प्रतिमाविज्ञान के अध्ययन में शाह का निश्चित ही सर्वप्रमुख योगदान है । किन्तु विभिन्न स्थलों की पुरातात्विक सामग्री के उपयोग में उन्होंने अपेक्षित नियमितता नहीं बरती है। उन्होंने सामग्री के प्राप्तिस्थल के सम्बन्ध में विस्तृत सन्दर्भ प्रायः नहीं दिये हैं, जिससे सामग्री का पुनर्परीक्षण दुःसाध्य हो जाता है । किसी स्थल के कुछ उदाहरणों का उल्लेख करते हुए भी उसी स्थल के दूसरे उदाहरणों का वे विवेचन नहीं करते। इसका कारण सम्भवतः यह है कि इन स्थलों की सम्पूर्ण मूर्ति सम्पदा का उन्होंने अध्ययन नहीं किया है। ओसिया, कुंभारिया, देवगढ़, खजुराहो जैसे महत्वपूर्ण स्थलों 1 १ शाह, यू०पी०, 'आइकनोग्राफी ऑव दि जैन गाडेस अम्बिका', ज०यू० बां०, खं० ९, पृ० १४७ - ६९; 'आइकानोग्राफी ऑव दि जैन गाडेस सरस्वती', ज०यू० बां०, खं० १० (न्यू सिरीज), पृ० १९५ - २१८; 'आइकनोग्राफी ऑव दि सिक्सटीन जैन महाविद्याज', ज०इं०सो०ओ०आ०, खं० १५, १९४७, पृ० ११४ - ७७; 'हरिर्नंगमेषिन्', ज० इं०सो ०ओ०आ०, खं० १९, १९५२-५३, पृ० १९-४१; 'ब्रह्मशान्ति ऐण्ड कपद्द यक्षज', ज०एम०एस०यू०ब०, खं० ७, अं० १, पृ० ५९-७२; 'आइकनोग्राफी ऑव चक्रेश्वरी, दि यक्षी ऑव ऋषभनाथ', ज०ओ०इं०, खं० २०, अं० ३, पृ० २८०-३११; ' यक्षिणी ऑव दि ट्वेन्टीफोर्थं जिन महावीर', ज०ओ०ई० खं० २२, अं० १ - २, पृ० ७०-७८ २ शाह यू० पी०, 'ए यूनीक जैन इमेज ऑव जीवन्तस्वामी', ज०ओ० इं०, खं० १, अं० १, पृ० ७२ - ७९; 'यक्षज वरशिप इन अर्ली जैन लिट्रेचर', ज०ओ०ई०, खं० ३, अं० १, पृ० ५४-७१ 'इण्ट्रोडक्शन ऑव शासनदेवताज इन जैन वरशिप', प्रो०ट्रां०ओ०कां०, २० वाँ अधिवेशन, भुवनेश्वर, पृ० १४१-५२; 'बिगिनिंग्स ऑव जैन आइकानोग्राफी', सं०पु०प०, अं० ९, पृ० १ - १४ Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org

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