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जैन धर्म की वैज्ञानिक आधारशिला
प्रकार हम यह आशा करते हैं कि जैन धर्म के पारिभाषिक आधार को समझने के लिये भी उतना ही समर्पण-परक श्रम होना चाहिये । इस सम्बन्ध में हमें यह स्मरण रखना चाहिये कि एलबर्ट आइंस्टीन के सापेक्षवाद को, विशेषज्ञों तक को, समझने के लिये कितना समय लगा था। अन्त में, मैं जैनों की इस मान्यता को जोर देकर कहना चाहता हूँ कि जैन विज्ञान की सत्यता का अनुभव तभी हो सकता है जब व्यक्ति 'केवल ज्ञानी' या 'अनंत ज्ञानी' हो जाये ।
लीड्स, यू.के. दीवाली, 9 नवंबर 1988
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कान्ति वी. मरडिया
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