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जैनधर्म और आधुनिक विज्ञान
121 होते हैं और काल की दृष्टि से अविरत रहते हैं। लेकिन ये क्षेत्र जीव और अजीव अर्थात् आत्मा और कार्मन के बीच अन्योन्य-क्रिया को अनुमति देते हैं। ऐसा प्रतीत होता है कि कर्म बलों के संचालन के लिये आत्मा और कार्मन के बीच अन्योन्यक्रिया के लिये बोसॉन की तरह काम करने वाले कण 'कषाय' हैं (जो कार्मिक विकिरण के एक रूप हैं)। ये कषायें ही कर्म-बंध कराती हैं। इनके विपर्यास में, नो-कषायों (बल-कवच) की उपस्थिति में केवल कार्मन-विकिरण (चित्र 10.6 देखिये) होता है, कर्म-बंध नहीं। हम इन दो प्रकार के बोसॉनों को क्रमश: 'पैसिओनो और 'ए-पैसिओनो' कह सकते हैं। एक दूसरे स्तर पर (एस. के. जैन का लेख, 1980), मृत्यु के समय विद्युत चुम्बकीय प्रकृति की तरंगों के रूप में उत्सर्जित ऊर्जा के रूप में मुक्त तेजोबल' (तैजस संपुट), संभवतः पुनर्जन्म के चक्रों की व्याख्या कर सके। इस प्रकार, यह तत्काल ही सुदूर गमन कर सकता है और विशिष्ट संकेतों प्रोटॉन
इलेक्ट्रॉन न्यूट्रॉन
फोटॉन
W
/
W
न्यूट्रॉन
(ब)
फोटॉन फोटॉन
प्रोटॉन
(अ)
इलेक्ट्रॉन
चित्र 10.4 दुर्बल बल : (अ) न्यूट्रॉन और फोटॉन W' को विनिमय
करते हुए; (ब) प्रोटॉन और इलेक्ट्रॉन W को विनिमय करते हुए
mmu
Error!
ग्रेविटॉन
ma
चित्र 10.5 दो मीसॉनों (my,m2) के बीच गुरुत्वीय बल और ग्रेविटॉन
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