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परिशिष्ट 2 : जैन आगम ग्रंथ
137 चौथी) आगम-वाचना हुई। आचार्य भद्रबाहु द्वितीय (पांचवी सदी) और जिनभद्रगणि क्षमाश्रमण (छठी सदी)आगमों के दो प्रमुख टीकाकार हैं। सारणी प.2.1 : जैनों के उपलब्ध प्रमुख आगम ग्रंथ और विविध सम्प्रदायों
द्वारा अनुमत संख्या क्र. जैन संप्रदाय 1. पूर्व 2. अंग 3. अंगबाह्य* अनुमत
(प्राचीन (प्राथमिक ग्रंथ) (द्वितीयक ग्रंथ) संख्या
ग्रंथ) 1. श्वेताम्बर 0 (14) प्रथम 11 (12) 34 (34) 45
(मूर्तिपूजक) 2. स्थानकवासी0 (14) प्रथम 11 (12) 3. तेरापंथी (श्वे.) 0 (14) प्रथम 11 (12) 21 (21) 32 4. दिगम्बर 0 (14)
___14 2 6 * देखिये, सारणी प.2.2 सारणी प.2.2 : सारणी प.2.1 के अंग बाह्य वर्ग-3 के ग्रंथों का विवरण
12
क्र.
अर्थ
वर्ग 3 के उपवर्ग
ग्रंथों की संख्या
श्वेता. स्थानक. दिग.
अ.
12
उपांग छेद-सूत्र मूल-सूत्र
अंगों के द्वितीयक ग्रंथ आचार-संहिता, प्रायश्चित्त मुख्य आचार-संहिता
6
स.
विविध
___ 10
0
14
प्रकीर्णक चूलिका आवश्यक सूत्र योग
34
21
14
सारणी प. 2.1 से प्रगट होता है कि आगमों की कुल संख्या 26 (दिगम्बर) से 84 (जयाचार्य) के बीच मानी जाती है। इनमें 45 के बदले 32
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