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परिशिष्ट 1 : भ. महावीर का जीवन वृत्त
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करुणा आयी। उनकी यह करुणा, किसी माता की पुत्र के प्रति करुणा के समान थी। ऐसा प्रतीत हुआ कि नाग के काटने से बने घाव से दुग्ध-धारा बह निकली हो। काटने की पीड़ा महावीर के लिये गौण हो गई और उनके मन में नाग के कल्याण की भावना प्रबल हो गई।
महावीर अपने निर्वाण काल तक रत्नत्रय की शिक्षा देते रहे और अभ्यास करते रहे। जैनों में आज भी उनके विभिन्न प्रकार के मूलभूत उपदेश
और आचार प्रचलित हैं जिनमें समयानुसार साधारण परिवर्तन ही हुए हैं। विशेषतः, सभी जैन दीवाली (प्रकाश का उत्सव मनाते हैं, क्योंकि इसी दिन महावीर को निर्वाण प्राप्त हुआ था और इसी दिन उनके प्रमुख शिष्य गौतम को केवलज्ञान प्राप्त हुआ था।
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