Book Title: Jain Dharm ki Vaignanik Adharshila
Author(s): Kanti V Maradia
Publisher: Parshwanath Vidyapith

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Page 159
________________ जैनधर्म की वैज्ञानिक आधारशिला स्थापना की। उनकी पुत्री प्रियदर्शना भी (जिसका विवाह जामालि के साथ हुआ था) महावीर की अनुयायी बनी । 134 तत्कालीन हिन्दू धर्म के प्रभाव से अपनी विचारधारा को विभेदित करने के लिये, उन्होंने नयी शब्दावली के विकास में बहुमुखी प्रतिभा प्रदर्शित की। उदाहरणार्थ, सामान्य अनुयायी को 'श्रावक' कहा गया जो श्रद्धा पूर्वक उपदेश सुनते हैं (श्र श्रद्धा, व-विवेक, क-क्रिया)। उन्होंने साधुओं को 'श्रमण' कहा, अर्थात् जो आध्यात्मिक पथ पर चलने के लिये श्रम करे। यही नहीं, उन्होंने दृढ़ता से जगत की स्व-चालितता की धारणा को पुष्ट किया अर्थात् उन्होंने उस ईश्वर की धारणा को निरस्त किया जो प्रत्येक व्यक्ति के दैनिक जीवन को प्रभावित करता है। यही नहीं, उन्होंने यह भी घोषणा की कि "प्रत्येक व्यक्ति को निर्वाण प्राप्त करने का अधिकार है और वह अपने ही प्रयासों से, किसी परम प्रभु - सत्ता या माध्यस्थ पुरोहित की सहायता के बिना ही, इसे प्राप्त कर सकता है।" महावीर ने सभी जीवों और मनुष्यों की समानता का प्रचार किया । इसके माध्यम से उन्होंने दासप्रथा, जातिप्रथा, पशुबलि आदि के त्याग का उपदेश दिया । वास्तव में, उनके साध्वी संघ की प्रमुख दासी चंदना ही थी । एक दूसरे सीमांत पर तत्कालीन राजाओं में एक प्रमुख राजा श्रेणिक बिंबसार उनका निष्ठावान अनुयायी बन गया (देखिये, एच. एल. जैन और उपाध्ये, 1974)। महावीर का एक क्रान्तिकारी योगदान यह था कि उन्होंने हिन्दुओं की इस धारणा में परिवर्तन किया कि संन्यासी या साधुओं का जीवन, जीवन के उत्तर भाग के पूर्व नहीं होना चाहिये। उन्होंने विचार प्रस्तुत किया कि सांसारिक कार्यों से निवृत्त होने के लिये कोई विशेष आयु या समय सीमा नहीं होती। जो लोग जीवन के प्रारम्भ काल में पूर्ण साधुता नहीं ग्रहण कर सकते, उनके लिये उन्होंने क्रमिक परिवर्तन का सुझाव दिया । महावीर की एक महत्त्वपूर्ण विशेषता यह थी कि वे सभी प्रकार के प्राणियों के प्रति करुणा के मूर्त रूप थे । इस सम्बन्ध में, चंडकौशिक नामक नाग का उदाहरण उद्धृत किया जाता है। यह नाग उसके यक्षायतन के सामने से जाने वाले रास्ते पर चलने वालों को रास्ता पार नहीं करने देता था । एक दिन महावीर उस रास्ते पर चले और उन्हें नाग ने काट लिया । लेकिन महावीर बड़े ज्ञानी थे। उन्होंने नाग के पूर्वभवों के ज्ञान के आधार पर यह जान लिया कि उसकी ऐसी प्रकृति कैसे बनी ? उन्हें उसके प्रति अत्यंत Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org

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