Book Title: Jain Dharm ki Vaignanik Adharshila
Author(s): Kanti V Maradia
Publisher: Parshwanath Vidyapith

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Page 192
________________ ___यह पुस्तक एक आधुनिक विचारक और वैज्ञानिक द्वारा लिखी गई है जिसे वैज्ञानिक ज्ञान के संप्रसारण वं शोधकला में अंतर्राष्ट्रीय ख्याति प्राप्त है। जैन धर्म को अच्छी तरह समझने के लिये यह पुस्तक अनमोल र्गदर्शक है। डा. मरडिया के अनुसार है कि जैन धर्म मानता है कि कोई भी व्यक्ति “जैन विज्ञान की समग्र त्यता को उस समय जान सकता है जब उसे केवलज्ञान या अनंत ज्ञान की क्षमता प्राप्त हो जाये। जैन ज्ञान के सत्य को प्रकट करने का उनका यह प्रयत्न बताता है कि उन्होंने जैन धर्म के साहित्य का गंभीर लोडन किया है। यह पुस्तक सत्य को प्राप्त करने तथा अपने अस्तित्व व उद्देश्य को समझने में सहायक के प में, विकासशील जैन धर्म को समझने के लिये, जैन एवं जैनेतर पाठकों के लिये महत्त्वपूर्ण मार्गदर्शिका हैं।। द जैन”, अप्रेल 1992 प्रो. सी. आर. राव, एफ.आर.एस, पैन स्टेट यूनिवर्सिटी, अमेरिका - इस पुस्तक का लेखक सैद्धान्तिक भौतिकी तथा जैन दर्शन-दोनों ही क्षेत्रों का प्रकांड विद्वान् हैं। यह स्तक सरल तथा सुबोध रूप में पठनीय है। उन्होंने आज की भाषा में एक नई शब्दावली और अवधारणाओं। का समुच्चय दिया है जो विज्ञान पूर्व समय की दुरूह शब्दावली में प्रच्छन्न थी। यह विश्वासपूर्वक आशा की। नाती है कि लेखक द्वारा प्रस्तुत पथ भविष्य में अनेक विद्वानों द्वारा अनुसरित किया जायगा। यह पुस्तक त्येक जैन या जैनेतर जिज्ञासु की पुस्तकों की आलमारी में होना चाहिये। द जैन”, मार्च 1991 पॉल मारेट, लेस्टर, यू.के. | इस पुस्तक के प्रारंभिक पृष्ठों में दो बाते हैं: (1) "आइंस्टीन के ये शब्द कि धर्म-विरहित विज्ञान पंगु है। और विज्ञान-विरहित धर्म अंधा है।” तथा (2) जैन= वह व्यक्ति जिसने स्वयं को जीत लिया है। हमारी समझ | सम्पूर्ण कृति पर इन दो मुख छवियों का अक्स है। इतने कम पृष्ठों में विद्वान् लेखक ने जैन धर्म और दर्शन की लगभग सम्पूर्ण अस्मिता को सफलतापूर्वक परोस दिया है। उन्होंने न्यूनतम शब्दों में अधिकतम सामग्री देने का प्रयास किया है। वस्तुतः एक ऐसी पुस्तक की तुरंत आवश्यकता थी, जो विज्ञान की आधारभूमियों पर खड़ी की और जैन धर्म को उसकी समग्रता में संप्रेषित करती हो। इस कृति ने इस सांस्कृतिक पिपासा को दूर करते। ए जैन धर्म/दर्शन के क्षेत्र को उपकृत किया है। "जैन दर्शन और विचार कालातीत है" का कथन विद्वान् / खक द्वारा पग-पग पर प्रमाणित हुआ है। लेखक की दो विशेषतायें हैं : संतुलन और स्पष्टता। आधुनिक वज्ञान की वर्णमाला में जैन सिद्धान्तों को व्याख्यायित कर लेखक ने अपनी समवर्तिनी पीढ़ी को उपकृत किया। / नई पीढ़ी जैन धर्म की प्रासंगिकता एवं सार्थकता को हृदयंगम करना चाहती है। नेमीचंद जैन, संपादक, 'तीर्थकर', इंदौर Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org

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