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जैनधर्म की वैज्ञानिक आधारशिला
को काटता है, तीसरा व्यक्ति शाखाओं को काटता है, चौथे स्तर का व्यक्ति फलों के गुच्छों को तोड़ता है, पांचवे स्तर का व्यक्ति पेड़ पर लगे पके फलों को तोड़ता है और छठे स्तर का व्यक्ति पेड़ के नीचे जमीन पर पड़े पके फलों को ही बीन लेता है (देखिये चित्र उ.1)। इस प्रकार, उच्चतम आध्यात्मिक स्तर के व्यक्ति के लिये पर्यावरण संरक्षण सर्वाधिक महत्त्वपूर्ण है। इसके साथ ही मल और प्रदूषण के उत्पन्न करने से भी कार्मनों के अंतर्ग्रहण में वृद्धि हो जाती है, क्योंकि ये हिंसक प्रवृत्तियां मानी जाती हैं (सिंघवी, 1991)। वास्तव में पर्यावरण-संरक्षण की समस्या का समाधान
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चित्र उ.1 लेश्याओं के निदर्शन के लिए आम का पेड़ और छह
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'मधुमक्खी' के उदाहरण से प्राप्त होता है जो पेड़ के फलों से, पेड़ को हानि पहुंचाये बिना ही, शहद को चूस लेती है और स्वयं को सशक्त बनाती है।
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