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जैनधर्म की वैज्ञानिक आधारशिला
या कर्म–शरीर को साथ में ले जा सकता है। उदाहरणार्थ, कार्मिक शरीर (जायगोट, युग्मनज नव-गर्भित) माता-पिता की दो कोशिकाओं के संयोग से उत्पन्न सर्वप्रथम कोशिका है। इससे संबद्ध और व्याप्त कर्म-शरीर फेरोमोनों (पशुओं द्वारा उत्पादित व्यक्तिगत लक्षणों के धारक रासायनिक घटक) आदि को वाहित कर सकता है। युग्मनजों द्वारा गृहीत ऊर्जा डी.एन.ए (जीवन का वंशानुगत कूट) में पूर्व निर्धारित परिवर्तनों को प्रेरित कर सकती है। इस विषय के लिये और भी गंभीर अध्ययन की आवश्यकता है। इस विवरण का संक्षेपण निम्न है :
__कर्म बल आत्मा + कार्मन
कषाय सरेस
→ संसारी जीव
आत्मा
कार्मन
/ ए-पैसिओनो
आत्मा
कार्मन
चित्र 10.6 बोसॉन के रूप में कार्यकारी ‘ए-पैसिओनो' के साथ कार्मिक
बल 10.4 कुछ और उपमायें
जी. आर. जैन (1975) और जवेरी (1975) ने जैन और आधुनिक कण-भौतिकी के मध्य अनेक समानतायें बताई हैं।
जैनों के द्वारा प्रस्तावित परमाणुओं (चरम कणों ) के पांच प्रमुख गुणों को वर्तमान भौतिकी के निम्न गुणों के समतुल्य माना जा सकता है, यद्यपि यह तुलना किञ्चित् स्वैच्छिक ही होगी :
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