Book Title: Jain Dharm ki Vaignanik Adharshila
Author(s): Kanti V Maradia
Publisher: Parshwanath Vidyapith

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Page 109
________________ जैन धर्म की वैज्ञानिक आधारशिला चित्र 7.3 से हम कार्मिक घनत्व के परिवर्तन के सूक्ष्मतर मानों का अनुमान लगा सकते हैं। पहले गुणस्थान में, y = 1 और सारणी 7.4 से यह प्रकट है कि मिथ्यात्व, अविरति..... लोभ और क्रियात्मकता के लिये कार्मिक घनत्व क्रमशः 7, 4....4 और 1 हैं। पांचवें गुणस्थान में कार्मिक घनत्व ज्ञात करने के लिये, हम y = 5 की रेखा देखें । यह रेखा मिथ्यात्व के त्रिकोण को अंतर्रोधित नहीं करती जिससे मिथ्यात्व स्तर पर कार्मिक घनत्व ० हो जाता है और बिंदु BB' पर (ट्रापीजियम) पर अन्तर्रोधन की आधार - र- लंबाई का आधा 1⁄2 है, फलतः अविरति के लिए कार्मिक घनत्व 2 है। यह सारणी 7.4 के अनुरूप है। लेकिन बिन्दु G पर, अन्तर्रोधन पूर्ववत् ट्रापीजियम की लम्बाई से आधा नहीं है, लेकिन कार्मिक घनत्व 2 से कुछ अधिक है। इस तरह चित्र 7.3 सारणी 7.4 में दी गई चरणबद्ध योजना का अविरत रूप है । यहां यह ध्यान में रखिये कि अध्याय 3 में दिये गये जीवन - यूनिट 84 कार्मिक व शुविकरण स्तर 14 13 12 112 10 7 13.1. ➡→→ #721 Jain Education International 10', 102, 103, 105, 1010, 10100, यहां कार्मिक घनत्व के क्रमशः 36, 24, 8, 5, 3 व 0.01 मानों के लगभग अनुरूप हैं । 4.217.10 चित्र 7.3 कार्मिक घनत्व में हानि और शुद्धिकरण - स्तर में वृद्धि : मिथ्यात्व, अविरति, क्रोध....... लोभ आदि की क्रियाओं के लिये y = स्थिरांक रेखा पर छायित चित्र के साथ बना अंतर्रोधन बंध कारकों के कार्मिक घनत्व की For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org

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