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जैन धर्म की वैज्ञानिक आधारशिला
3. पी. एस. जैनी; पेज 150
“सभी प्राणियों में मौलिक क्षमता के अस्तित्व के प्रति जागरूकता तथा इनके साथ घटित होने वाले सम्बन्ध सभी के प्रति अनुकम्पा की भावना को जाग्रत करते हैं। यद्यपि सामान्य मनुष्य की अनुकम्पा में दया या राग होता है, पर वास्तविक अनुकम्पा इस प्रकार के नकारात्मक पक्ष से मुक्त होती है। यह मात्र अंतःप्रज्ञा से विकसित होती है, दृश्य पर्यायों वाले द्रव्य को देखकर विकसित होती है। यह व्यक्ति के मन में एक निःस्वार्थ इच्छा जगाती है कि
वह दूसरों के मोक्ष प्राप्ति के मार्ग में सहायक बने।" 4. पी. एस. जैनी; पेज 159
"शरीर-धारण या जीवन के अंतिम क्षणों में योग (या क्रियाओं) का भी अवरोधन हो जाता है। यह नितांत अक्रियता की अवस्था 'अक्रिय सर्वज्ञता' या अयोग केवली की अवस्था कहलाती है। यह चौदहवां और अंतिम गुणस्थान है। निर्वाण या महामृत्यु के समय, आत्मा सांसारिक प्रभावों के अंतिम चिह्नों या सूचकों (शरीर आदि) से भी मुक्त हो जाता हैं।"
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