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शुद्धिकरण के उपाय
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है कि साधु इन मार्गनिर्देशों का, जहां तक संभव हो सके, सभी समय परिपूर्णता से पालन करे। उदाहरणार्थ, साधु का आहार, श्रावक की अपेक्षा अधिक नियंत्रित होता है।
सारणी 8.1 गुणस्थान और उनके अनुरूप अभ्यास
गुणस्थान
1-4
5
6.
7.
8-10.
12-14.
अभ्यास
प्रश्न, "मैं कौन हूं"
उत्तर : स्वतः सिद्ध अवधारणा
1–3, 4 अ, 4 ब, 4 स में विश्वास
( सम्यक्त्व के आठ अंगों का अभ्यास )
श्रावक की ग्यारह प्रतिमाओं (उपचरणों) का अभ्यास (चित्र 8.1 देखियें)
गुप्ति 3; समिति 5; धर्म 10; अनुप्रेक्षा 12 परीषहजय 20 या 22 का अभ्यास धर्म ध्यान का अभ्यास
पहले दो प्रकार के शुक्ल ध्यान का अभ्यास अन्तिम दो प्रकार के शुक्ल ध्यान का अभ्यास
8.5 उच्चतर गुणस्थान और ध्यान
उच्चतर गुणस्थानों में जाने के लिये, व्यक्ति को ध्यान के प्रगत रूपों-धर्म ध्यान और शुक्ल ध्यान का अभ्यास करना पड़ता है। ये ध्यान खंड 8.4 में वर्णित दश धर्मों के अंतर्गत विशेष तप धर्म के अंग हैं। धर्म ध्यान में 48 मिनट तक निम्न विषयों पर गहन विचारणा की जाती है' :
1. नौ तत्त्वों से सम्बन्धित जैन उपदेश (आज्ञा )
2. दूसरों को सहायता करने के साधन (अपाय)
3. कर्मों के विपाक और विसर्जन की प्रक्रिया ( विपाक ) 4. लोक की संरचना (लोक)
( यह विश्वास किया जाता है कि कोई भी व्यक्ति औसतन लगभग 48 मिनट तक ही गहन ध्यान में लीन रह सकता है) । ध्यान के समय प्रमाद का घटक दमित हो जाता है, फलतः ध्यान करने वाला अस्थायी रूप से सातवें गुणस्थान में पहुँच जाता है। जब व्यक्ति ध्यान के समयों में लीन रहता है और बाद में सामान्य अवस्था में आता है, तब वह छठवें एवं सातवें गुणस्थान के बीच परिवर्ती होता रहता है ।
अप्रमत्त अवस्था में किया जाने वाला ध्यान मोक्ष की तैयारी का सोपान माना जाता है, लेकिन यह स्वयं की सूक्ष्म कषायों का वियोजन नहीं
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