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शुद्धिकरण के उपाय
किया जाता है। यह मानसिक दशा क्लेश या चिन्ता की स्थिति है। उसके विपर्यास में, दूसरा ध्यान रौद्र ध्यान कहलाता है जिसमें हिंसा, झूठ, चोरी, कुशील और परिग्रह के संरक्षण के समान आपराधिक दुष्क्रियाओं के विषय में चिन्तन किया जाता है एवं आनंद की अनुभूति की जाती है। ध्यान के ये दोनों प्रथम रूप छठवें गुणस्थान तक ही रहते हैं। इनके विषय में विस्तृत विवरण के लियें डा. टाटिया की पुस्तक (1986) देखा जा सकता है। 8.6 तीन रत्न या रत्नत्रय
हमनें पूर्व में जो स्वतःसिद्ध अवधारणायें प्रस्तुत की हैं, उन्हें उमास्वाति के 'तत्त्वार्थसूत्र' के निम्न सूत्र 1.1 के द्वारा संक्षेपित किया जा सकता है :
सम्यग्दर्शनज्ञानचारित्राणि मोक्षमार्गः। अर्थात् सम्यक-दर्शन, सम्यक्-ज्ञान और सम्यक-चारित्र का समन्वित रूप मोक्ष का मार्ग है। (देखियें परिशिष्ट 3 ब, उद्धरण 8.2)। जैन धर्म में सम्यक् दर्शन, सम्यक्-ज्ञान और सम्यक-चारित्र के त्रिक को 'रत्नत्रय' कहते हैं और इन्हें क्रमशः ही प्राप्त किया जाता है। इनमें सम्यक-दर्शन या सम्यक्-विश्वास को ही सबसे पहले अपनाया जाता है - यह चौथे गुणस्थान में होता है - इसके बाद सम्यक-चारित्र को आठवें गुणस्थान पर प्राप्त करते हैं और सम्यक-ज्ञान को तेरहवें गुणस्थान में प्राप्त करते हैं। चित्र 8.2 में इन विचारों के संक्षेपण को परम्परागत व प्रतीकात्मक रूप में प्रदर्शित किया गया है (जो सामान्यतः पूजा-प्रार्थना में प्रयुक्त होता है)। सामान्यतः इनके नीचे स्वस्तिक का चिह्न भी दिया जाता है जो प्राणियों की चार प्रकार की मानसिक दशाओं या चार गतियों का संकेत करता है (चित्र 3.3)। वास्तव में, सम्यक्-दर्शन (या सत्य अंतर्दृष्टि) आत्मा, कर्म-पुदगलों तथा अन्य सात तत्त्वों (आस्रव आदि) में विश्वास करने की प्रक्रिया है। सम्यक्-ज्ञान इन्हें समझने और जानने की विधि है और सम्यक-चारित्र तो तपस्या रूप है। (देखिये, परिशिष्ट 3 ब, उद्धरण 8.3)।
सम्यक-ज्ञान अनेकांतवाद को भी महत्त्व देता है जिसे विविध पक्षों पर आधारित कथन के माध्यम से बहुतत्त्ववादी सापेक्ष दृष्टि से विचार करने तथा जैन अनुमान-विधि के माध्यम से वैज्ञानिक तर्क आदि के रूप में व्यक्त किया जाता है (देखियें अगला अध्याय 9)। यह कहा जाता हैं कि विकास की प्रक्रिया में पहले ज्ञान होता हैं, और उससे दया विकसित होती है (परिशिष्ट 3 ब, उद्धरण 8.4)। सम्यक-चारित्र तो तप ही है जिसका वर्णन इसी अध्याय में पहले ही किया जा चुका है। परंतु यह ध्यान में रखना
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