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जैनधर्म और आधुनिक विज्ञान
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सिद्धान्त और वास्तविकता की प्रारंभिक जानकारी के लिये कृपया गामो (1965) और ग्रिबिन (1984) की पुस्तकों का अध्ययन कीजिये। (2) विकासवाद
पूर्ववर्ती सदी के जीव विज्ञान की सबसे महान् सफलताओं में डार्विन के विकासवाद का सिद्धान्त भी एक है। यह एक रोचक और ध्यान देने योग्य बात है कि प्रत्येक प्राणी अपने कार्मिक घनत्व के माध्यम से विकासवाद से भी आगे चला जाता है और इस प्रकार वह सम्पूर्ण सृष्टि को समाहित करता है। यह सिद्धान्त जीवन के विकास के मौलिक प्रश्न के समाधान का व्यक्तिवादी क्रियाविधि के रूप में, प्रयत्न करता है। तथापि, यहां यह ध्यान रखना चाहिये कि विकासवाद एक अनुत्क्रमणीय भौतिक प्रक्रम है और जैनों का कर्म-आधारित विकासवाद एक उत्परिवर्तनीय भौतिक एवं आध्यात्मिक प्रक्रम है। (3) पदार्थ और ऊर्जा की विनिमयशीलता
एलबर्ट आइंस्टीन के अनेक क्रांतिकारी विचारों में एक यह दावा भी था कि पदार्थ ऊर्जा में और ऊर्जा पदार्थ में विनिमयित हो सकते हैं अर्थात् पदार्थ और ऊर्जा अन्योन्य-विनिमयी तत्त्व हैं। उनका प्रमुख समीकरण निम्न है :
ऊर्जा = द्रव्यमान x प्रकाश-वेग' जैनों में यह धारणा सदियों से चली आ रही है। इस घटना के विवरण के लिये 'पुद्गल' शब्द का उपयोग किया गया है (अध्याय 4 देखिये)। साथ ही, इस शब्द में यह तथ्य स्पष्ट है कि पदार्थ और ऊर्जा एक ही सिक्के के दो पहलू है। जैसा हम जानते हैं कि ग्रीक भाषा में इस घटना के विवरण के लिये कोई शब्द नहीं है, और इस प्रकार वहां इस प्रकार की वैज्ञानिक अभिव्यक्ति भी नहीं है। इस विषय में मात्र यही कहा जा सकता है कि इस गंभीर धारणा के लिये द्रव्यमान-ऊर्जा शब्द का उपयोग किया जाय। (4) मूलभूत बल
वर्तमान में विज्ञान चार मूलभूत बलों को मानता है : 1. गुरूत्वीय 2. विद्युत-चुम्बकीय 3. दुर्बल न्यूक्लीय 4. प्रबल न्यूक्लीय
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