Book Title: Jain Dharm ki Vaignanik Adharshila
Author(s): Kanti V Maradia
Publisher: Parshwanath Vidyapith

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Page 141
________________ 116 जैनधर्म की वैज्ञानिक आधारशिला इस बात के प्रयत्न किये जा रहे हैं कि इन सभी बलों को केवल एक 'महाबल' के रूप में लघुकृत किया जाये। इस दृष्टि से जैनों के कर्म-बल या प्राण-संचारण बल की धारणा महत्त्वपूर्ण है जिसे एक अतिरिक्त बल के रूप में मानना चाहिये जो मन पर पदार्थ के प्रभाव के समान अनेक अ-भौतिक घटनाओं की व्याख्या कर सकता है। इसके विषय में अधिक अध्ययन की आवश्यकता है। यदि इस प्रकार के कर्म-बलों का अस्तित्व है, तो इस बल के घटक कण कार्मन होंगे जिनके गुण अति सूक्ष्म हैं, क्योंकि वे प्रत्येक सजीव द्रव्य में अवशोषित हो जाते हैं। इसी कारण उनकी पहचान बहुत कठिन हो जाती है। चौथे अध्याय मे हमने बताया है कि गति और स्थिति माध्यम के रूप में मान्य जैनों के दो द्रव्य-धर्म और अधर्म-द्रव्य गतिशील एवं स्थिर बल के रूप में माने जा सकते हैं जो आत्मा और पदार्थ में या उनके बीच अन्योन्यक्रिया (असमानगति) और साम्य (समान गति में ?) की व्याख्या करते हैं। यह उपरोक्त महाबल की धारणा का गुणात्मक रूप हो सकता है। जी. आर. जैन (1975) ने धर्म द्रव्य को अभौतिक आकाशीय ईथर और अधर्म द्रव्य को गुरूत्वीय एवं विद्युत-चुम्बकीय बल के एकीकृत बल के रूप में बताया है। __ आगे के खंडों में हम इन्हीं बलों के विषय में विस्तृत विवेचन करेंगें। 10.2 आधुनिक कण-भौतिकी यह सुज्ञात है कि उन्नीसवीं सदी के अंत में जे. जे. थॉमसन ने इलेक्ट्रॉन की खोज की थी। इससे रासायनिक तत्त्वों के अन्य लघुतर घटकों-परमाणुओं के विषय में अन्वेषण की प्रेरणा मिली। यह लगभग 1910 के आसपास की बात है कि रदरफोर्ड और उसके साथियों ने सर्वप्रथम यह बताया कि परमाणुओं मे इलेक्ट्रान और न्यूक्लियस (केन्द्रक) होते हैं। न्यूक्लियस में न्यूट्रॉन (उदासीन) और प्रोटॉन (धनाविष्ट) कण होते हैं जिन्हें संयुक्त रूप से न्यूक्लिऑन कहते हैं। यह सुज्ञात है कि इलेक्ट्रॉन ऋणावेशित कण है (आवेश = -1) और न्यूट्रॉन अनावेशित कण है अर्थात वैद्युत दृष्टि से वे उदासीन हैं। किसी भी रासायनिक तत्त्व के परमाणु की संरचना का सरलतम उदाहरण हाइड्रोजन परमाणु प्रस्तुत करता है। तथापि, इसके समस्थानिकों में एक या दो न्यूट्रॉन हो सकते हैं, पर इस कारण इसके रासायनिक गुणों में कोई परिवर्तन नहीं होता है। रासायनिक स्थायित्व के लिये इलेक्ट्रॉन और प्रोटानों की संख्या सदैव बराबर होनी चाहिये। 1970 के दशक के प्रारम्भ में, परमाण संरचना के सम्बन्ध में प्रबल परिवर्तन हुआ (चित्र 10.1 देखिये)। फलतः भौतिक कणों के तीन वर्ग माने जाते हैं : Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org

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