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अध्याय 10 जैन धर्म और आधुनिक विज्ञान 10.1 अनुरूपतायें या उपमायें
जैन धर्म को मात्र एक 'धर्म' कहना सही नहीं है, क्योंकि यह 'जीव और अजीव वस्तुओं से व्याप्त समस्त विश्व की व्याख्या के लिये एकीकृत वैज्ञानिक आधार देने का प्रयत्न करता है। इस तरह, यह एक समग्र विज्ञान है जो धर्म सहित सभी वस्तुओं एवं घटनाओं को समाहित करता है। इस युग में विज्ञान के महत्त्वपूर्ण योगदान और उसके समानांतर जैन-मान्यतायें आगे दी जा रही हैं (मरडिया, 1988 ब)। यहां यह ध्यान में रखना चाहिये कि नीचे दिये गये विवरण से यह स्पष्ट है कि जैन विज्ञान मुख्यतः गुणात्मक है। फिर भी, जैन विज्ञान अनेक प्रकरणों में आधुनिक विज्ञान से भी आगे बढ़ जाता है, लेकिन उनमें शायद ही कभी कोई विरोध प्रतीत होता है। (1) कण-भौतिकी और क्वांटम सिद्धांत
यह केवल इसी सदी की बात है कि (यंत्र) प्रौद्योगिकी में इतनी प्रगति हुई है जिसके माध्यम से परमाणु-प्रक्रम और मौलिक/प्राथमिक कणों का अध्ययन किया जा सके और उनके विषय में जानकारी की जा सके। यहां ध्यान देने योग्य बात यह है कि जैनों ने परमाणु-सम्बन्धी विचारो को कार्मन-कणों की धारणा के विकास के माध्यम से एक कदम आगे बढ़ाया है। यह बात विवादग्रस्त हो सकती है कि ये कार्मन कण हैं या नहीं ? लेकिन यह एक रोचक तथ्य है कि स्वयं-नियंत्रित जगत और इसमें विद्यमान जीवन की व्याख्या में ये कण अच्छी तरह समायोजित होते हैं।
क्वांटम सिद्धांत तो बहुत कुछ प्रायिक या संभावनात्मक है। कुछ प्रकरणों में तो यह जैनों के सापेक्ष कथनों के सिद्धान्त के अति समीप आ जाता है। (देखिये, अध्याय 9)। यह सिद्धान्त अंशतः एक संभावनात्मक सिद्धान्त है जो विज्ञान के लघुकरण-सिद्धान्त से सम्बन्धित है। जैनों का अनेकांतवाद का सिद्धान्त इस सिद्धान्त का पूरक है (अध्याय 9 देखिये)। वर्तमान में, विज्ञान उपरोक्त दो सिद्धान्तों के बीच परिवर्तित हो रहा है। तथापि, ये दावे भी किये जा रहे हैं कि विश्व ऐसे तत्त्वों से बना है जिनका अस्तित्व आत्मा (या मानव चेतना) पर निर्भर नहीं करता। ये दावे क्वाटम सिद्धांत के विरोध में जाते हैं और उन तथ्यों से भी मेल नहीं खाते जो प्रयोगों के आधार पर स्थापित हुए हैं। (देखिये डी'. स्पगनेट, 1979)। फिर भी, ऐसे भी प्रयत्न किये जा रहे हैं कि क्वांटम सिद्धान्त के प्रादर्शों में चेतना का घटक भी समाहित किया जा सके (देखिये, जान, 1982)। क्वांटम
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