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शुद्धिकरण के उपाय
इसके साथ ही, कर्म - घटक निम्नानुसार वियोजित होते हैं (यहां हम खण्ड 4.2 के अनुसार संकेतों का प्रयोग करेंगें) :
1. कर्म - घटक अ, ( दर्शन मोहनीय) का चौथे गुणस्थान में वियोजन हो जाता है।
2. कर्म-घटक अ1⁄2 ( चारित्र मोहनीय) बारहवें गुणस्थान में वियोजित होता है ।
3. मूलभूत तीन कर्म - घटक ब, स और द ( अंतराय, ज्ञानावरण और दर्शनावरण) तेरहवें गुणस्थान में वियोजित होते हैं ।
4. सभी चारों द्वितीयक (अघाति कर्म), य, र, ल, व ( वेदनीय, नाम, आयु और गोत्रकर्म) चौदहवें गुणस्थान में मृत्यु के समय एक साथ वियोजित हो जाते हैं। यहां यह ध्यान देना चाहिये कि आत्मा सर्वप्रथम बाह्य आयतों को शुद्ध करता है, और उन्हें रिक्त करता हुआ केन्द्र की ओर बढ़ता है। जब जीव के समस्त कर्म - पुद्गल निर्जरित हो जाते हैं, तब चित्र 2.6 एक ऐसे रिक्त क्षेत्र में बदल जाता है जिसकी कोई सीमा नहीं होती। इससे ज्ञात होता है कि आत्मा पूर्णतः कर्म - रहित या शुद्ध हो गई है ।
8.7 आत्मिक विकास की प्रक्रिया की परंपरागत घी- निर्माण और आधुनिक मोटर-संचालन प्रक्रम से सादृश्य
आध्यात्मिक प्रगति को समझाने के लिये प्रयुक्त परम्परागत उपमायें अनेक हैं। इनमें से एक में इस प्रक्रिया की घी ( मक्खन के शुद्ध रूप ) के बनाने की प्रक्रिया से तुलना की जाती है । सारणी 8.2 में इसके विभिन्न चरणों के अनुरूप आध्यात्मिक विकास के चरण बताये गये हैं। ये चरण लगभग गुणस्थानों के क्रम के समरूप ही हैं जैसा कि सारणी 8.2 के अन्तिम (तीसरे) कालम में दिया गया है।
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सारणी 8.2 शुद्ध मक्खन (घी) बनाने की प्रक्रिया और आत्मा के शुद्धिकरण की प्रक्रिया की अनुरूपता
क्र.
1.
2.
घी बनाने की प्रक्रिया के चरण
दूध से घी बनाना
दूध को गर्म करना
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आत्म-विकास के समानांतर चरण
सम्यक् - दर्शन के रूप में शुद्ध आत्मा के अस्तित्व का साक्षात्कार करना अस्तिकाय आदि तप करना
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गुणस्थान
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