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जैन धर्म की वैज्ञानिक आधारशिला
चाहियें कि अंध-विश्वासी तप हमारे आत्म-विकास को बहुत आगे नहीं बढ़ाता । यह कहा गया है कि यदि कोई व्यक्ति सम्यक ज्ञान के बिना एक माह में केवल घास की एक नोंक के बराबर आहार लेता है, तो वह पुण्य का सोलहवां भाग भी अर्जित नहीं करता है (परिशिष्ट 3ब, उद्धरण 8.5) 1
यह ध्यान देने की बात है कि प्राणियों पर चारों कषायों के विभिन्न स्तरों के प्रभाव निम्न प्रकार से होते हैं :
1. कषायों के चौथे स्तर पर न तो विश्वास और न चारित्र ही सम्यक् होता
है ।
2. कषायों के तीसरे स्तर पर विश्वास तो सम्यक् होता है, लेकिन वहां मिथ्या चारित्र का त्याग अवरुद्ध होता है ।
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संयम की पूर्णता में बाधा आती है, लेकिन संयम का अनुपालन होता है संयम का पूर्णतः पालन होता है, लेकिन यहां ध्यान के प्रति कुछ उदासीनता रहती है और शरीर के प्रति सूक्ष्म कोटि का राग भी रहता है।
3. कषायों के दूसरे स्तर पर सम्यक् - दर्शन और आंशिक 4. कषायों के पहले स्तर पर
5. कषायों के शून्य स्तर पर, पूर्ण संयम की स्थिति प्राप्त होती है
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मोक्ष
सम्यक्-दर्शन
सम्यक ज्ञान
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चित्र 8.2 जैनों के तीन रत्न और मोक्ष ( इन तीन रत्नों के नीचे चित्र 3.3 में दिया गया स्वस्तिक का चिह्न भी चित्रित किया
जाता है) ।
सम्यक् चारित्र
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