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जैन धर्म की वैज्ञानिक आधारशिला
रखना चाहिये कि समग्र ज्ञान को न्याय-वाक्यों (सिलोगिजम) के बारम्बार उपयोग के माध्यम से संयोजित किया जाता है। इस दृष्टि से पहले हम निम्न उदाहरण पर विचार करें। छह अंधे हैं जो हाथी के विषय में सम्पूर्ण ज्ञान करना चाहते हैं। उनमें से प्रत्येक अंधा हाथी के विभिन्न अंगों या शरीर के अवयवों का स्पर्श करता है (देखिये चित्र 9.2)। जो अंधा व्यक्ति हाथी का पैर छूता है, वह कहता है, "हाथी तो एक स्तंभ या खंभे के समान है। जो व्यक्ति सूंड को पकड़ता हैं, वह कहता है, “ हाथी तो एक नली के समान है।" जो व्यक्ति हाथी के कान को पकड़ता है, वह कहता है, “हाथी तो सूप के समान है" इत्यादि। इस प्रकार हम देखते हैं कि हाथी के सम्बन्ध में प्रत्येक अंधे व्यक्ति का मत भिन्न-भिन्न है। इसलिये यदि हम हाथी के विषय में समग्र रूप से जानना चाहते हैं, तो हमें उसे सभी ओर से देखना चाहिये। हाथी के निदर्शन के संदर्भ में प्रमाण, प्रत्यक्ष प्रमाण के इंद्रियजन्य रूप अर्थात् स्पर्शन के द्वारा निरीक्षण के रूप में समाहित होता है। प्रत्येक अंधे व्यक्ति का निरूपण नय की कोटि में आता है। (यह कहानी पश्चिम जगत में सर्वप्रथम जे.जी. साक्स (1816-1877) की कविता के माध्यम से लोकप्रिय हुई प्रतीत होती है। मरडिया (1991) ने इस कविता को पूर्णतः उद्धृत किया है)।
यह कहानी जैनों के अनेकांतवाद के सिद्धान्त को निदर्शित करती है। अब हम इसे एक वास्तविक प्रकरण पर लागू करें। हम निम्न आपेक्षिक कथनों पर विचार करें :
1. पृथ्वी गोल हो सकती है। 2. पृथ्वी गोल नहीं भी हो सकती है। 3. पृथ्वी गोल भी हो सकती है और नहीं भी हो सकती है। 4. पृथ्वी की आकृति अवक्तव्य या अनिश्चित हो सकती है। 5. पृथ्वी गोल हो सकती है और इसकी आकृति अनिश्चित हो
सकती है। 6. पृथ्वी गोल नहीं हो सकती है और इसकी आकृति अनिश्चित
हो सकती है। 7. पृथ्वी गोल हो भी सकती है, गोल नहीं भी हो सकती है और
इसकी आकृति अनिश्चित हो सकती है। इन सात कथनों के आधार पर हम यह निष्कर्ष प्राप्त करते हैं कि विश्वीय दृष्टिकोण से पृथ्वी गोल है, लेकिन यह स्थानीय या क्षेत्रीय दृष्टिकोण से यह गोल नहीं है। इसी तरह के निष्कर्ष हम मंगल और शुक्र ग्रहों के विषय में भी प्राप्त कर सकते हैं। इसलिये ये निष्कर्ष सभी ग्रहों पर भी लागू हो सकते हैं।
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