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7.7 विभिन्न गुणस्थानों में अन्योन्य- संक्रमण
हमने ऊपर यह संकेत दिया है कि एक गुणस्थान से दूसरे गुणस्थान में परिवर्तन कैसे होता है ? चित्र 7.4 में इन विविध संक्रमणों को प्रदर्शित किया गया है। इसका प्रथम खंड (भाग) आध्यात्मिक अक्ष है जैसा चित्र 7.4 में बताया गया है। यहां हम प्रथम गुणस्थान से तीसरे गुणस्थान में जाते हैं, फिर चौथे गुणस्थान में जाते हैं और फिर या तो पांचवे गुणस्थान में जाते हैं या फिर गिर कर दूसरे गुणस्थान में आते हैं। फिर पांचवें गुणस्थान से या तो हम छठवें गुणस्थान में जाते हैं अथवा चौथे या दूसरे गुणस्थान में अधःपतित होते हैं। छठवें गुणस्थान से या तो हम सातवें गुणस्थान पर जाते हैं या फिर पांचवें या चौथे गुणस्थान में अधः पतित होते हैं । आठवें गुणस्थान से या तो हम नौवें गुणस्थान पर जाते हैं या फिर हम अध:पतित भी हो सकते हैं। नवमें गुणस्थान से दसवें गुणस्थान में संक्रमण हो सकता है। अब व्यक्ति दसवें से सीधे बारहवें गुणस्थान पर जाता है। ग्यारहवां गुणस्थान अत्यंत ही सरकौआ या अविश्वसनीय है। इस स्तर से व्यक्ति अध:पतित होकर किसी भी स्तर पर गिर सकता है, पर सामान्यतः वह छठे या सातवें गुणस्थान पर आ जाता है। एक बार जब व्यक्ति बारहवें गुणस्थान पर आ जाता है, तब अधःपतन नहीं होता और वह तेरहवें और चौदहवें गुणस्थान पर क्रमशः पहुंच जाता है। परिशिष्ट 4 में इन महत्त्वपूर्ण संक्रमणों को निदर्शित करने के लिये सांप-सीढ़ी का परिवर्धित खेल दिया गया है ।
7.8 पारिभाषिक शब्दावली
गुणस्थान,
चौदह शुद्धिकरण चरण दृष्टिकोण, प्रबुद्ध दृष्टिकोण: सम्यक्त्व,
संयम/विरि
पूर्ण संयम
चरण
1.
2.
मिथ्यादृष्टि
सासादन
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जैन धर्म की वैज्ञानिक आधारशिला
=
आत्मसंयम / व्रत परिपालन,
आत्मसंयम की परिपूर्णता
: भ्रान्त या मिथ्या दृष्टिकोण
: अस्पष्ट दृष्टिकोण
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