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आत्म–विजय का मार्ग
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प्रकट होती हैं। इस प्रकार बिन्दु 0 मिथ्यात्व के अपनयन के प्रारम्भ का सूचक है और बिन्दु A सारणी 7.4 के अनुरूप प्रबुद्ध दृष्टिकोण के विकास का प्रतीक है। बिन्दु B पर अविरति का अपनयन प्रारंभ हो जाता हैं और जब बिन्दु B आता है, तब पूर्ण संयम या नियंत्रण हो जाता है। इसी प्रकार, बिन्दु C' अप्रमाद का बिन्दु है जो सातवें गुणस्थान में प्राप्त होता है। बिन्दु D अक्रोध या शांति का बिन्दु है। बिन्दु E मायारहितता या सरलता का बिन्दु हैं, बिन्दु G द्वितीयक कषायों के विलोपन का बिन्दु है, बिन्दु H निर्लोभता या संतोष का बिन्दु हैं और बिन्दु K मोक्ष-प्राप्ति के पूर्व का बिन्दु है। यहां यह ध्यान दीजियें कि बिन्दु K' पर अर्थात् तेरहवें गुणस्थान में क्रियाओं की निवृत्ति प्रारंभ हो जाती है।
सारणी 7.4 विभिन्न गुणस्थानों में कर्मबंध के घटकों का कार्मिक घनत्व .
कषायें
गुण मि
अवि प्र. क्रो. मा
माया द्वि. लो,
यो
कुल कार्मिक • घनत्व
टिप्पण
क.
2
5
4
4
4
4
4
4
4
1
सही दृष्टिकोण प्राप्त होता है
2
4
2
2
2
2
2
1
17
0
0
1
1
1
।
1
5
पूर्ण संयम प्राप्त होता है सावधानी आती है, क्रो = 0
मान शून्य होता है
0
0.5 0.1 0
1 । 1
15 1.1 1.0
माया शून्य होती है द्वि. कषायें दूर होती है अल्पतम लोभ
सभी कषायें विलुप्त
0.1
झान पूर्ण होता है क्रियायें अवरुद्ध होती है
0.01
0.01
• सारणी 7.4 के संकेत : गुणस्थान = गुण; मिथ्यात्व = मि; अविरति = अवि.; प्रमाद = प्र.; क्रोध = क्रो.; मान = मा.; द्वितीयक कषायें (हास्य आदि) = द्वि.क.; लोभ = लो; योग = यो.
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