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आत्मा एवं कर्म–पुद्गलों का सिद्धान्त का चुम्बक से संयोग कर्म-बंध/समेकन के रूप में माना जा सकता है अर्थात् कर्म आत्मा के साथ दृढ़ता से बंध जाते हैं। बल-क्षेत्र कवच (Forcefield shield) लौह-कणों को चुम्बक द्वारा आकर्षित होने से रोकता है और यह रोधक (Insulator) का काम करता है। वास्तव में, इस बल-क्षेत्र में विद्यमान पहले से संयुक्त कणों का निर्झरण उसके वि-चुम्बकीकरण को व्यक्त करता है। इससे पता चलता है कि अब चुम्बक की ओर आकर्षण नहीं है। इस प्रकार, जब सभी कण विलगित हो जाते हैं, तब आत्मा कर्म-पुद्गलों के चुम्बकीय प्रभाव से मुक्त हो जाता है। इस निर्झरण के बाद जो अवशेष रहता है, वह शुद्ध और मुक्त आत्मा है। यह अनुरूपता चित्र 2.7 में प्रदर्शित की गई है। जैसा पहले बताया गया है - यह ध्यान में रखना चाहिये कि यह कवच एक अनुरूपता है क्योंकि यहां कर्म-पुद्गल अपने ही गुणवाले कार्मन-कणों को आकर्षित करता है जबकि लौह-चूर्ण के कण एक-दूसरे को आकर्षित नहीं करते।
+ + संदूषित आत्मा
लौह चूर्ण = कर्म पुद्गल
चुम्बक = आत्मा
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शुद्ध आत्मा
मुक्त आत्मा
कर्म -पुद्गल चित्र 2.7 आत्मा एक चुम्बक है और कर्म-पुद्गल लौह चूर्ण है। 2.4.2. अन्य विविध अनुरूपतायें
चुम्बक के अतिरिक्त, हम यहां पेट्रोल का उदाहरण भी ले सकते हैं। यह कच्चे तेल का परिष्कृत रूप है। सामान्यतः, पेट्रोल की ज्वलन ऊर्जा, उसकी प्राकृतिक अशुद्धियों के कारण अस्पष्ट रहती है और उसके परिशोधन से ही उसका समग्र ज्वलन-सामर्थ्य प्रकट होता है। फलतः यह स्पष्ट है कि इसका परिशोधित रूप शुद्ध आत्मा और उसमें विद्यमान अशुद्धियां कर्म पुद्गल के समान हैं :
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