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जैन धर्म की वैज्ञानिक आधारशिला
मुक्त करके निम्न जीवन कोटि के प्राणियों के जीवन- धुरी पर उच्चतर कोटि में जाने की प्रक्रिया में सहायक होते हैं। श्रृखला के समान प्रगति की यह धारणा बड़ी ही रोचक हैं।
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4.7 सामान्य समीक्षा
स्वतः सिद्ध अवधारणा 3 में दो महत्त्वपूर्ण बिन्दु माने गये हैं :
1. मन और पदार्थ का विज्ञान तथा 2. पुनर्जन्म का सिद्धान्त
किट पेडलर (1981) ने भौतिकीविदों के द्वारा अनुसंधानित उन नियमों की वर्तमान प्रवृत्ति का विवेचन किया है जो न केवल पदार्थ को अनुशासित करते हैं, अपितु चेतना को भी प्रभावित करते हैं और जिनके द्वारा धातुओं का जोड़ना, वस्तुओं का स्थानांतरण, मन:पर्यय ज्ञान आदि की व्याख्या की जा सकती है। तथापि, इस दिशा में बहुत प्रयत्न करने पर भी प्रगति सीमित ही है । पेडलर केवल उन बिन्दुओं की चर्चा की है जिन पर कम से कम, आज वैज्ञानिक अनुसंधान हो रहा है। केपरा की शोध (1975) निश्चित रूप से इससे एक कदम आगे है।
पुनर्जन्म के विषय में विल्सन (1981) ने अपनी पुस्तक में उन व्यक्तियों के विभिन्न प्रकार के विवरणों की विश्वसनीयता की परीक्षा की है जो सम्मोहन की प्रक्रिया में अपने पूर्वजन्म की अवस्था में पहुंचे और जिसका उन्होंने वस्तुनिष्ठ वर्णन किया है। उन्होंने लिखा है कि एक सम्मोहक डाक्टर जो कीटन ने यह कहा है कि विश्व में न तो स्वर्ग ही है और न एक जीवन से दूसरे जीवन के बीच कोई विश्राम स्थल है। मृत्यु से पुनर्जन्म की प्रक्रिया तात्कालिक होती है। यह उपकल्पना उसी के समान है जिसका विवरण हमने ऊपर दिया है ।
4.8 पारिभाषिक शब्दावली
1. आठ कार्मिक घटक (कर्म) अ. प्राथमिक कर्म
ब. सुख-विकारी कर्म अ 1. अंतर्दृष्टि विकारी
अ 2. चारित्र विकारी
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घातिया कर्म, गुण-विकारी मोहनीय कर्म दर्शन मोहनीय कर्म चरित्र मोहनीय कर्म
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