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जैन धर्म की वैज्ञानिक आधारशिला
कार्मन-कणों की संख्या x है। यहां यह भी ध्यान में रखना चाहिये कि नये कर्म पुद्गल वियोजन या उदय के पूर्व कुछ समय के लिये प्रसुप्त या निष्क्रिय रहते हैं। सारणी 5.1 में x कार्मन कणों से सम्बन्धित चार महत्त्वपूर्ण कारक दिये गये हैं।
सारणी 5.1 सूत्र x+ ........+ x = x के साथ बन्धन में समाहित x-कार्मनों की आयु एवं सक्रियता
कर्म-घटक प्रत्येक घटक की
मात्रा
वियोजन का समय- अंतराल
वियोजन की तीव्रता
X
(t, t2) (to), theP) (ts(1), ty(2) (L), t(2) (ts(1), t;(2) (t6(1), ta(2) (t,(1), th2)) (ts'), tg(2)
Xs
सारणी 5.1 में x1........ Xs कार्मिक घटकों में कार्मन-कणों के विभिन्न परिमाण हैं, t(1), th(2) आदि विभिन्न कर्मों के वियोजन के अनुरूप समय अंतराल हैं और fi,...........f8 वियोजन के समय बन्ध की तीव्रतायें हैं।
कर्मबन्ध में भाग लेने वाले कार्मन-कणों की सही संख्या X भावों की तरतमता पर निर्भर करती है जिसके कारण क्रिया की जाती है। विभिन्न कार्मिक घटकों के बीच x कणों का वितरण क्रिया की प्रकति पर निर्भर करता है अर्थात् क्रिया की प्रकृति अभेदित कार्मन-कणों के द्वारा गृहीत विशिष्ट कार्मिक घटकों का निर्धारण करती है। यहां यह भी ध्यान में रखना चाहिए कि प्रत्येक कर्म-घटक, अ, ब आदि के लिए वियोजन समय, t स्थिर रहता है लेकिन विभिन्न घटकों के लिए यह परिवर्ती भी हो सकता है।
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