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जैन धर्म की वैज्ञानिक आधारशिला
यहां यह ध्यान दीजिये कि कालखण्ड 1 और 12 तथा कालखण्ड 2 और 11 आदि समान हैं। इन काल-चक्रों को चित्र 6.3 में प्रदर्शित किया गया है। और वहां प्रत्येक काल-खण्ड में सुख और दुःख के क्षेत्र बताये गये हैं जो उपरोक्त धारणाओं का निदर्शन करते हैं । इस प्रकार, एक पूर्णचक्र में 12 काल-खण्ड होते हैं जो निम्न हैं:
1
2 3
4
5
6 7 8 9 10
सुसुसु सुसु सुसुदु सुदुदु दुदु दुदुदु दुदुदु दुदु सुदुदु सुसुदु
हम इस पूरे काल-चक्र को एक जैन काल चक्र, ( JTC) कहते हैं । इस सम्बन्ध में निम्न बिदुओं पर ध्यान दीजिये :
तीर्थंकरों की पुनरुत्पत्ति
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hh 11 12 1
10
765
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2
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अवनतिमान अर्धचक्र
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प्रगतिमान | 21000 वर्ष अर्धचक्र
का प्रारंभ
4- दीर्घतम कालखंड
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*21000 वर्ष
11 12
सुसु सुसुसु ।
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सभी
चौबीस
तीर्थकरों
का जन्म
चित्र 6.3 जैन विश्व में प्रवाहमान एक पूर्ण काल-चक्र (घड़ी की दिशा में) और सुख - दुःख के स्तर को प्रदर्शित करनेवाला रेखाचित्र ( छायित क्षेत्र में h. (सुख), m. ( दुःख ) ) | यहां भग्न चाप (arc) दीर्घ काल को व्यक्त करता है। अवनतिमान अर्ध काल-चक्र बिंदु P से प्रारंभ होता है ।
महावीर
• जम्बू : अंतिम मुक्त (463 ई.पू.)
2000 ई.
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