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कार्मन कणों का सीमांत अवशोषण
टिप्पणियां
1. पी. एस. जैनी, पेज 169
- मृत प्राणियों का मांस भी असंख्य सूक्ष्म जीवाणुओं के जन्म में सहायक होता है और इसलिये इसे आहार आदि के काम में नहीं ही लेना चाहिये ।
2. पी. एस. जैनी, पेज 168
जहां किण्वन या मधुरता रहती है, वहां निगोद के समान सूक्ष्म जीवाणु, अनिवार्य रूप से रहते हैं। इसलिये शराब या शहद के उपयोग से इस कोटि के लाखों मूक प्राणियों का असामयिक एवं क्रूर अन्त होता है। कुछ पौधों के ऊतक विशेषतः मीठे, गूदेदार और बहु-बीजक कोटि के फल भी निगोदों के जन्म के लिये सहायक होते हैं। इस कोटि के पौधों को साधारण वनस्पति कहते हैं (अर्थात् वे वनस्पति जिनका शरीर सह-भागी होता है)। अंजीर के समान उदुंबर कोटि के फलों के त्याग को मूलगुणों के रूप में रखने का उद्देश्य समस्त प्रकार के निगोद-युक्त वनस्पतियों या फलों के त्याग का प्रतीक प्रतीत होता है ।
3. पी. एस. जैनी; पेज 171
उदाहरणार्थ, एक हत्यारा पहले से ही अपने शिकार को मारने की बात सोचता है। इसलिये वह संकल्पी हिंसा करता है। इसके विपरीत, डाक्टर जटिल शल्य क्रियाओं में रोगी को पीड़ा या यहां तक कि मृत्यु के मुख में भी पहुचाते हैं, लेकिन वे केवल आरंभजा ( या उद्योगी ?) हिंसा (जो बहुत गंभीर नहीं मानी जाती) के ही दोषी माने जाते हैं ।
4. पी. एस. जैनी; पेज 32
प्रत्येक समय विश्व के किसी न किसी भाग में कहीं न कहीं एक जीवित तीर्थकर अवश्य होता है। इसका अर्थ यह है कि मुक्ति का मार्ग प्रत्येक समय खुला रहता है। इसके लिये यह आवश्यक है कि यदि मनुष्य अपनी मुक्ति के तात्कालिक अवसर का आकांक्षी है, तो उसे किसी न किसी विदेह क्षेत्र में उत्पन्न होना आवश्यक है।
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