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________________ 68 जैन धर्म की वैज्ञानिक आधारशिला यहां यह ध्यान दीजिये कि कालखण्ड 1 और 12 तथा कालखण्ड 2 और 11 आदि समान हैं। इन काल-चक्रों को चित्र 6.3 में प्रदर्शित किया गया है। और वहां प्रत्येक काल-खण्ड में सुख और दुःख के क्षेत्र बताये गये हैं जो उपरोक्त धारणाओं का निदर्शन करते हैं । इस प्रकार, एक पूर्णचक्र में 12 काल-खण्ड होते हैं जो निम्न हैं: 1 2 3 4 5 6 7 8 9 10 सुसुसु सुसु सुसुदु सुदुदु दुदु दुदुदु दुदुदु दुदु सुदुदु सुसुदु हम इस पूरे काल-चक्र को एक जैन काल चक्र, ( JTC) कहते हैं । इस सम्बन्ध में निम्न बिदुओं पर ध्यान दीजिये : तीर्थंकरों की पुनरुत्पत्ति h Jain Education International h hh 11 12 1 10 765 h 2 h h अवनतिमान अर्धचक्र h h प्रगतिमान | 21000 वर्ष अर्धचक्र का प्रारंभ 4- दीर्घतम कालखंड h h *21000 वर्ष 11 12 सुसु सुसुसु । For Private & Personal Use Only ↑ सभी चौबीस तीर्थकरों का जन्म चित्र 6.3 जैन विश्व में प्रवाहमान एक पूर्ण काल-चक्र (घड़ी की दिशा में) और सुख - दुःख के स्तर को प्रदर्शित करनेवाला रेखाचित्र ( छायित क्षेत्र में h. (सुख), m. ( दुःख ) ) | यहां भग्न चाप (arc) दीर्घ काल को व्यक्त करता है। अवनतिमान अर्ध काल-चक्र बिंदु P से प्रारंभ होता है । महावीर • जम्बू : अंतिम मुक्त (463 ई.पू.) 2000 ई. www.jainelibrary.org
SR No.003667
Book TitleJain Dharm ki Vaignanik Adharshila
Original Sutra AuthorN/A
AuthorKanti V Maradia
PublisherParshwanath Vidyapith
Publication Year2002
Total Pages192
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size7 MB
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