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कर्मों का व्यावहारिक बंध
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(अ) क्रोध
(ब) मान
(स) माया
(द,) अधिक खान-पान की प्रवृत्ति
(द) लोभ या लालसा
चित्र 5.1 जैन धर्म में चार प्रमुख कषायें
2. मान कषाय : अब हम मान कषाय की पांच कोटियों को निदर्शित करेंगे।
इसकी प्रथम कोटि वृक्ष की शाखा के पतले स्कंध के समान होती है जो नरम होती है और सरलता से मुड़ सकती है। इसकी दूसरी कोटि वृक्ष की नयी शाखा के समान होती है जो तूफानी हवाओं से ही मुड़ सकती है (या अधिक बल लगाने पर मोड़ी जा सकती है)। मान कषाय की
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