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जैन धर्म की वैज्ञानिक आधारशिला
2. दूसरा शरीर कार्मिक शरीर है जो आत्मा के साथ रहने वाले कर्म - पुद्गलों के समुच्चय का प्रतीक है ।
आत्मा (जीव )
कार्मिक शरीर
चित्र 4.3: अपने कार्मिक शरीर और तैजस शरीर के साथ विग्रह-गमन
इस प्रकार के शरीरों का अस्तित्व पुनर्जन्म के सिद्धान्त की व्याख्या के लिये महत्त्वपूर्ण हैं क्योंकि ये एक ऐसे वाहन का काम करते हैं जिससे आत्मा अपने सामर्थ्य से ही एक जन्म से दूसरे जन्म की ओर जाती है । '
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तैजस शरीर
मृत्यु के समय, शरीर - निर्माणक कार्मिक घटक ( नामकर्म), अगले शरीरी जीवन के लिये विशिष्ट स्थितियों को पहले से ही कार्यक्रमित कर देते हैं। यह संसूचन कार्मिक शरीर में होता है । मृत्यु के समय, आत्मा भौतिक शरीर से वियुक्त होकर तत्काल एक सरल रेखा में उस दिशा में गमन करती है जिसे आत्मा के साथ रहने वाले कर्म-पुद्गल पहले से ही निर्धारित कर देते है । 2
यह परिवाहित कर्म-पुद्गल लगभग एक वायुरुद्ध सील बंद संपुट (कैप्स्यूल) के समान होता है (तैजस शरीर) जिसमें कार्मिक शरीर और आत्मा होती है (चित्र 4.3 देखिये) जो आगंतुक कर्मों के आस्रव और कार्मन - कणों के निर्झरण को रोकती है । मृत्यु के समय आत्मा की शक्ति के कारण होने वाले स्वाभाविक प्रणोदन के बावजूद भी, यह बहुत दूर तक नहीं जा सकता जब तक कि यह गर्भ में या अंडे में भौतिक शरीर के रूप में प्रविष्ट न कर जाये। यदि जीव मुक्त नही हुआ है, तो, खंड 4.4 में परिभाषित स्थिति माध्यम इस स्थिति पर नियंत्रण करता है ।
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