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जैन धर्म की वैज्ञानिक आधारशिला आचार्य कुंदकुंद ने 'अंतिम कणों से निर्मित पुद्गलों (स्कंधों) की छह कोटियां बतायी हैं। सर्वप्रथम, सूक्ष्म-सूक्ष्म' पुद्गल कणों में विद्यमान भौतिक ऊर्जा विद्युत-ऊर्जा के समकक्ष होती हैं। पुद्गल का दूसरा रूप 'सूक्ष्म' कहलाता है जिसमें बहुतेरे 'अन्तिम कण' होते हैं और, फलतः यह 'आणविक' होता है। "सूक्ष्म-सूक्ष्म' कोटि के समान, "सूक्ष्म' कोटि भी इतनी छोटी होती है कि इसे इंद्रियों के द्वारा पहचाना नहीं जा सकता। यहां यह ध्यान में रखना चाहिये कि वैज्ञानिक शब्दावली मे अणु परमाणुओं के सम्मिलित समूह या स्कंध को कहते हैं। संदूषित आत्मा पर संलगित कर्म-पुद्गल 'सूक्ष्म' कोटि के पुद्गल हैं जिनमें अनंत कार्मन कण होते हैं।
कार्मिक शरीर के निर्माणक कर्म-पुद्गल अत्यंत सूक्ष्म कोटि के होते हैं। कार्मिक संपुट भी अत्यंत सूक्ष्म और अदृश्य कोटि का होता है, पर वह कार्मिक शरीर के कर्म-पुद्गल के समान अति-सूक्ष्म नहीं होता। यह कार्मिक शरीर सभी संदूषित आत्माओं में पाया जाता है। ये शरीर इतने सूक्ष्म होते हैं कि ये प्रत्येक वस्तु में से पारगमित हो सकते हैं और इनमें से सभी वस्तुयें पारगमित हो सकती हैं। (यहां हमें न्यूट्रिनो कणों के व्यवहार का स्मरण होता है)।
तैजस शरीर-संपुट को कुछ विद्वानों ने चुम्बकीय या वैद्युत शरीर के रूप में अनुवादित किया है। यह भी माना जाता है (सी.आर. जैन, 1929) कि यह तैजस पुद्गलों से निर्मित शरीर है और यह जीव (आत्मा) के दो अन्य शरीरों के बीच एक अनिवार्य कड़ी का काम करता है। इस तरह की कड़ी इसलिये आवश्यक है कि कार्मिक शरीर के पुद्गल अति-सूक्ष्म होते हैं और औदारिक शरीर के पुद्गल इतने स्थूल होते हैं कि इन दोनों में प्रत्यक्ष या तत्काल अन्योन्यक्रिया नहीं हो पाती।
____ पुद्गल की तीसरी कोटि 'सूक्ष्म-स्थूल' कहलाती है। इस कोटि की वस्तुयें चार इंद्रियों के द्वारा तो पहचानी जा सकती हैं, पर वे इतनी स्थूल नहीं होती कि उन्हें आंखों से देखा जा सके (जैसे, ऊष्मा, ध्वनि, आदि)। वे वस्तुयें चार इंद्रियों- स्पर्शन, रंसन, घ्राण और कर्ण द्वारा गृहीत की जाती हैं लेकिन वे मूर्त या दृश्य नहीं होती।
पुद्गल की चौथी कोटि 'स्थूल-सूक्ष्म' कहलाती है। यह "सूक्ष्म-स्थूल' कोटि से स्थूलतर होती है जो दृष्टिगोचर नहीं होती। यह कोटि उन पुद्गलों की है जो स्थूल या मूर्त-से दिखते हैं पर जिन्हें हम ग्रहण नहीं कर सकते (जैसे प्रकाश आदि)। इस प्रकार यहां प्रकाश को सूक्ष्मतर कणों का स्कंध माना जाता है। यहां हम इस धारणा की ओर भी ध्यान दिलाना चाहते हैं कि प्रकाश कभी-कभी कणों के प्रवाह के रूप में माना जाता है और अन्य अवसरों पर यह विद्युत-चुम्बकीय तरंग के रूप में
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