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आत्मा एवं कर्म-पुद्गलों का सिद्धान्त
ऊपर दिये गये कारक (1-4) कर्मों की बंध-प्रक्रिया के क्रम को भी निरूपित करते हैं। 2.3.3. दीर्घकालिक साम्य की अवस्था
ऊपर हमने आत्मा की लघु-कालिक अवस्था का वर्णन किया है। अब हम आत्मा की दीर्घ-कालिक साम्य अवस्था पर विचार करेंगे। जब आत्मा से कर्म-पुद्गलों का पूर्णतः निःसरण या क्षय हो जाता है, तो जो अवशेष रहता है, वह शुद्ध आत्मा है :
(संसारी) आत्मा - कर्म/कार्मन कण = शुद्ध आत्मा - इसका अर्थ यह है कि आत्मा के चार घटकों के अनन्त स्तर होते हैं जैसा कि खंड 2.2.2 में बताया गया है।
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चित्र 2.5 लघु (रिक्त वृत्त) और भारी (भरे हुए वृत्त) के रूप में नवागंतुक __ कार्मिक कणों और आत्मा (जीव) के बीच अन्योन्यक्रिया की प्रक्रिया।
इस (शुद्ध आत्मा की) स्थिति को प्राप्त करने के लिए दो चरण होते हैं। प्रथम चरण में कार्मिक बलों का कवच होने से कार्मिक आस्रव अवरुद्ध हो जाता है अर्थात् नये कार्मन कणों का आगमन पूर्णतः समाप्त हो जाता है। द्वितीय चरण में, संचित कार्मिक पुद्गलों का पूर्णतः पतन या निःसरण होता
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