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आत्मा एवं कर्म - पुद्गलों का सिद्धान्त
ऐसा माना जाता है कि ये कार्मन-कण भारी या लघु कार्मिक द्रव्यों में संघटित हो जाते हैं अर्थात् वे ऐसे कार्मिक द्रव्यों में सुगठित होते हैं जिनका घनत्व उच्च या अल्प होता है। भारी कार्मिक द्रव्य से यह संकेत मिलता है कि कर्म-बंध प्रबल है और लघु कार्मिक द्रव्य से कर्म-बंध की दुर्बलता प्रकट होती है। दुर्बल कर्म-बंध को आत्मा (जीव) से सरलता से अपघटित किया जा सकता है। इस प्रकार कार्मिक द्रव्यों का संघटन एक गतिशील या परिवर्तनशील प्रक्रिया है और इसलिये इसके कार्य भी परिवर्ती होते हैं। इस प्रक्रिया को चित्र 2.5 में प्रदर्शित किया गया है जहां विकर्णी रेखाओं के बदले लघु कार्मिक द्रव्य के घटक रिक्त वृत्तों से प्रदर्शित किये गये हैं और भारी कार्मिक द्रव्य के घटक भरे हुए वृत्तों से प्रदर्शित किये गये हैं। ये वैकल्पिक निरूपण कार्मिक द्रव्य के घटकों की विशेषता प्रकट करते हैं।
उपरोक्त प्रकार से विभेदित (लघु या भारी) कार्मिक घनत्व निम्न कारकों पर निर्भर करते हैं :
कार्मिक बंध में कार्मन - कणों की संख्या
1.
कर्म पुद्गल
आत्मा,
चित्र 2.1 कर्म - पुद्गल ( विकर्ण रेखायें), और कर्मबल रेखाओं ( समानांतर रेखायें ) के साथ आत्मा (वर्ग) : अर्थात् कर्म बंध का निदर्शन
कर्म बल रेखायें
कार्मन
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चित्र 2.2 एक आगंतुक कार्मन कण (= वृत्त बिंदु) और कार्मिक
आस्रव (= वक्र रेखायें)
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