________________
16
Z
चित्र 2.3 चित्र 2.2 के आगंतुक कार्मन - कणों के साथ कर्म-बंध ( टेढ़ी-मेढ़ी सीमा)
चित्र 2.4 चित्र 2.3 में दिये गये कर्म-बंध के बाद पुनर्गठित कर्म- पुद्गल (अनेक और मोटी विकर्णी रेखायें और अनेक बाहरी रेखायें)
2 3 4
4.
जैन धर्म की वैज्ञानिक आधारशिला
(1).
(2-3)
(4).
विभिन्न प्रकार के कर्म - पुद्गल या कार्मिक घटक
कार्मिक निःसरण की स्थितिज ऊर्जा
बंधे हुए कर्म - कणों के क्षय / पतन का समय (स्थिति)
सामान्यतः कार्मिक घटक आत्मा के चार मुख्य घटकों (2.2.1) के विरोधी होते हैं और वे आत्मा के
सुख घटक को विकृत करते हैं ।
ज्ञान और दर्शन घटकों को आवृत्त करते हैं ।
वीर्य - घटक को अवरुद्ध करते हैं ।
इस विषय में विस्तृत विवरण अध्याय 3 में दिया गया है।
Jain Education International
For Private & Personal Use Only
www.jainelibrary.org