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जैन धर्म की वैज्ञानिक आधारशिला
अंग्रेजी अर्थ जैनों के संदर्भ में उपयुक्त नहीं हैं । ( कुछ प्रमुख शब्द देखिये जो
आगे दिये गये हैं ।)
जैन धर्म के प्राथमिक परिचय के लिये, मैं पाठकों को पॉल मारेट की पुस्तक "जैनीज्म एक्स्प्लेन्ड" (जैनधर्म की व्याख्या, 1989 ) और श्री विनोद कपासी की पुस्तक "जैनीज्म फार यंग परसन्स (युवाओं के लिये जैनधर्म, 1985) पढ़ने का सुझाव देना चाहता हूँ । प्रो० उर्सुला किंग (1987) के एक सद्यः प्रकाशित लेख का अध्ययन भी उपयोगी होगा ।
इस पुस्तक के अध्ययन के लिये मैं यह मानता हूँ कि पाठक साधारण भौतिकी एवं सांख्यिकी से परिचित होंगे। इससे इस पुस्तक में स्पष्ट वैज्ञानिक और सचित्र निरूपण हो सका है जो अन्यथा संभव नहीं हो
पाता ।
अनेक जैन युवक विश्वास की अपेक्षा जन्मजात रूप में अपने धर्म का पालन करते हैं। भारत में लगभग 90 लाख जैन हैं और विदेशों में भी लगभग एक लाख जैन हैं । मेरा विश्वास है कि यह पुस्तक नयी पीढ़ी को बुद्धिवादी विश्वासपूर्ण जैन बनाने में सहायक होगी।
इसके प्रथम अध्याय में जैनधर्म का संक्षिप्त परिचय दिया गया है और फिर चार स्वतःसिद्ध अवधारणाओं की सूची दी गई है । अध्याय 2 से 7 में इन अवधारणाओं का परिचय दिया गया है और आधुनिक संदर्भ में उनकी तर्कसंगतता को विवेचित किया गया है। इन अवधारणाओं के कारण कुछ महत्त्वपूर्ण बिंदु भी उभरे हैं जिन पर प्रकाश डाला गया है। अध्याय 8 में जैनों के मूलभूत आचरण और अभ्यासों की रूपरेखा दी गई है। अध्याय 9 में जैन तर्कशास्त्र सम्बन्धी कुछ धारणायें दी गई हैं। अध्याय 10 में यह निरूपित किया गया है कि जैन धर्म और आधुनिक विज्ञान एक-दूसरे से किस प्रकार सम्बन्धित हैं। प्रत्येक अध्याय की समाप्ति पर स्वरभेद (डाइक्रिटिकल मार्क्स, स्वर विशेषक चिह्न), के साथ मूल पारिभाषिक शब्द तथा उनके अंग्रेजी समकक्ष शब्द दिये गये हैं। इससे पाठक को समकक्ष शब्द तथा स्वरभेद विशेषक वर्तनी को जानने में सहायता मिलेगी ।
पुस्तक के प्रथम परिशिष्ट में भगवान् महावीर का जीवन चरित्र दिया गया है। द्वितीय परिशिष्ट में जैन आगमों के सम्बन्ध में जानकारी दी गई है जिनसे उपरोक्त स्वतः सिद्ध अवधारणायें निष्कर्षित की गई हैं। जैनधर्म में, ईसाई धर्म की एकल पुस्तक 'बाइबिल' के समान कोई एक पवित्र पुस्तक
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