________________
xiv
जैन धर्म की वैज्ञानिक आधारशिला
बढ़ाया है। इनमें से डा. सी. आर. राव, एफ. आर. एस., ( दी जैन), पॉल मारेट (जैन जर्नल, दी जैन), क्रिस्टी. एल. बाइली (जिन मंजरी), नेमीचंद जैन (तीर्थंकर) तथा ई. आर. श्रीकृष्ण शर्मा प्रमुख हैं ।
मैं विशेषतः डा. एन. एल. जैन का बहुत आभारी हूं जिन्होंने इस पुस्तक के संशोधन में महत्त्वपूर्ण योगदान किया है। मैं श्री गुरुदेव चित्रभानु, डा. दुलीचंद जैन, और राज खुल्लर को उनकी सतत प्रेरणा के लिये, और श्री हैरी ट्रिकेट को उनकी उपयोगी समीक्षा के लिये धन्यवाद देना चाहता हूं। श्री यार्कशायर जैन फाउंडेशन के सदस्यों ने अपनी बैठकों में इस पुस्तक के संशोधन में बहुत योगदान किया है। मैं अपनी पत्नी सौ. पवन के सुझावों से बहुत लाभान्वित हुआ हूँ तथा मुझे परिवार के अन्य सदस्यों-बेला, रघु, हेमंत, प्रीति, नीता, और हिमांशु से भी बहुत सहयोग मिला है। साथ ही, सौ. पवन ने कृपाकर इस संस्करण के प्रूफ देखें है तथा नयी विषय-सूची तैयार की है ।
मुझे विश्वास है कि इस संस्करण के उत्तम गुणवत्ता के कागज पर मृद्रित होने तथा इसके फलस्वरूप इसके चित्रों की गुणवत्ता के अभिवर्धित होने से पाठकों को इसके पढ़ने में और भी अधिक प्रसन्नता होगी ।
पर्यूषण, 25 अगस्त, 1995
Jain Education International
For Private & Personal Use Only
के. वी. मरडिया
www.jainelibrary.org