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जैन
और जैनधर्म
जैन न्याय और दर्शन तो चौबीसवें तीर्थंकर भगवान महावीर के समय से प्रमुखता में आये। भगवान महावीर का जन्म 599 ईसा पूर्व (कनु पिल्लई, 1973 के अनुसार, सोमवार, मार्च 27, 599 ई.पू.) और निर्वाण 527 ई.पू. (मंगलवार, अक्टूबर 15, 527 ई.पू.) में हुआ था। वे गौतम बुद्ध (563-483 ई.पू) के समकालीन थे। वे दोनों 36 वर्ष तक सम-व्याप्त रहे, परन्तु एक-दूसरे से कभी नहीं मिले। अतः यह एक साधारण बात है कि उन दोनों धर्मनेताओं के विषय में और उनके धर्म के विषय में भ्रान्ति हो। तथापि, इनकी प्रतिमाओं से उन्हें विभेदित किया जा सकता है। बुद्ध की प्रतिमायें सवस्त्र होती हैं जबकि महावीर की प्रतिमायें बिना वस्त्र के होती हैं (चित्र 1.1 देखें)। यह भी ध्यान में रखना चाहिये कि जब बुद्ध ज्ञान प्राप्ति की प्रक्रिया में संलग्न थे, तब महावीर अपने जीवन के चरम उत्कर्ष पर थे। महावीर के जीवन के पूर्ण विवरण के लिये इस पुस्तक का परिशिष्ट - 1 देखिये। इन तिथियों को ऐतिहासिक दृष्टि से देखने पर ज्ञात होता है कि यूनान के संत अरस्तू 384 ई.पू. में उत्पन्न हुए थे और जीसस क्राइस्ट लगभग 4 ई.पू. में उत्पन्न हुए थे। यहां यह भी ध्यान में रखना चाहिये कि भारत में महावीर का 2500 वां निर्वाण महोत्सव 13 नवम्बर 1974 से 4 नवम्बर 1975 तक मनाया गया था। ये सभी महत्त्वपूर्ण तिथियाँ चित्र 1.2 में संक्षेपित की गई हैं। (वर्ष 2001-02 में भगवान महावीर का 2600 वां जन्म महोत्सव मनाया जा रहा है)। जैनधर्म के अनेक प्रशंसकों में महात्मा गांधी का नाम प्रसिद्ध है जो श्रीमद् राजचंद भाई जैन से बहुत प्रभावित हुए थे (देखिये, एस. एन. हे., 1970)। 1.2 जैनधर्म के कुछ प्रमुख सिद्धान्त
जैनधर्म का सर्वाधिक प्रमुख सिद्धान्त मानसिक, वाचिक और कायिक अहिंसा है। यह केवल मनुष्य मात्र के प्रति ही नहीं, वरन् सभी निम्न कोटि के जीवों के प्रति भी लागू होता है। इसीलिये प्रायः सभी जैन अनुयायी शाकाहारी होते हैं। वे शहद और शराब भी नहीं लेते। उनका विश्वास है कि इनमें सूक्ष्म जीवन होता है, सूक्ष्म जीव होते हैं।
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