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जैन और जैनधर्म
सांसारिक क्रिया में भाग नहीं लेते और उनकी शारीरिक क्रियायें भी नहीं होतीं ।
सुधारवादी आंदोलन भी हुए हैं। श्वेताम्बरों के दो उप-सम्प्रदायस्थानकवासी (स्थानक में रहनेवाले) और तेरापंथी (तेरा - जिन का पंथ माननेवाले), मंदिरों और मूर्तियों में विशेषतः विश्वास नहीं करते हैं। इनके अतिरिक्त, दिगम्बरों का भी एक उप-सम्प्रदाय - तारणपंथ भी मूर्तिपूजा का विरोधी है । सारणी 1.1 में विभिन्न जैन सम्प्रदायों एवं उप-सम्प्रदायों का समग्र विवरण दिया गया है जिसमें सम्प्रदायों के संस्थापक, प्रारम्भ काल एवं विभेदक लक्षण भी दिये गये हैं। इनकी विभिन्न बाह्य प्रमुखताओं के बावजूद भी सभी जैन मतावलम्बी जैनधर्म की मौलिक मान्यताओं एवं चौबीस तीर्थंकरों में विश्वास करते हैं ।
सारणी 1.1: जैनो के विभिन्न सम्प्रदाय, उनके संस्थापक, प्रारम्भकाल और विभेदक लक्षण
1.
2.
सम्प्रदाय
दिगम्बर
सुधारवादी आंदोलन
1 अ. तारण पंथ
1 ब. अन्य,
श्वेताम्बर
सुधारवादी आंदोलन
2 अ. स्थानकवासी
2 ब तेरापंथी
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संस्थापक
भद्रबाहु
बनारसीदास, टोडरमल
स्थूलभद्र
तारण स्वामी सोलहवीं सदी मंदिर नहीं होते, प्रार्थना /
स्वाध्याय भवन होते हैं ।
लोकशाह
प्रारम्भकाल
300 ई.पू.
आचार्य भीखणजी
सोलहवीं सदी अठारवीं सदी
300 ई.पू.
पंद्रहवीं सदी
विशेषतायें
साधु अचेल होते हैं, मूर्तिपूजक, स्त्रियों की मुक्ति नहीं होती
1760 ई.
पूर्ण संयम, मंदिरो में विधानादि नहीं होता ।
श्वेत वस्त्री साधु, मूर्तिपूजक, स्त्रियों की मुक्ति हो सकती है।
मंदिर व मूर्तिपूजा नहीं, साधु पट्टी लगाते हैं
मंदिर एवं मूर्तिपूजा नहीं, साधुओं को सहायता, अन्य को नहीं,
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