Book Title: Jain Dharm ki Vaignanik Adharshila
Author(s): Kanti V Maradia
Publisher: Parshwanath Vidyapith

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Page 13
________________ xii जैन धर्म की वैज्ञानिक आधारशिला शब्दों की भरमार रह सकती है जिनके लिये यथार्थ और आधुनिकतः समकक्ष . शब्द नहीं मिल सके हों। फलतः ऐसी पुस्तक को अच्छी तरह समझना लगभग कठिन ही है। प्रोफेसर मरडिया सांख्यिकी जैसे श्रमसाध्य विज्ञान के प्रसिद्ध विद्वान हैं। वे गणितज्ञ हैं, वस्तुतः वे सांख्यिकीविद् हैं। उन्होंने राजस्थान एवं नीउकेसल (इंग्लैंड) विश्वविद्यालयों से तीन पी.एच.डी. की उपाधियां प्राप्त की हैं। साथ ही, वे जैनधर्म के भक्त व पालक हैं। इस प्रकार, वे जैनधर्म के मौलिक सिद्धान्तों, दर्शन व नीतिशास्त्र को आधुनिक वैज्ञानिक रूप में और आधुनिक भाषा में प्रस्तुत करने में सक्षम हैं। ___ उनकी पुस्तक प्रकृत्या तीन भागों में विभाजित है। पहले भाग में वे आत्मा, कर्म, जीव और अजीव के सम्बन्ध में मूलभूत जैन मान्यतायें प्रस्तुत करते हैं और फिर उन्हें समेकीकृत कर विश्व, जीवन और मृत्यु से सम्बन्धित जैनों की व्याख्या देते हैं। दूसरे भाग में वे सामान्य से विशेष की ओर जाते हैं। इसके अंतर्गत वे आत्म-विजय के अभ्यास एवं आत्म-शुद्धि के पथ का निरूपण करते हैं। इसके तीसरे भाग के दो अध्याय हैं जिनका गहन अध्ययन आवश्यक है। इसमें उन्होंने जैन तर्कशास्त्र को प्रामाणिक एवं स्वीकृतियोग्य तंत्र के रूप में प्रतिष्ठित किया है। इस आधार पर उन्होंने इस अध्याय में जैनों की वैज्ञानिक धारणाओं का आधुनिक भौतिक विज्ञान के मौलिक और नवीन पक्षों की दृष्टि से विवेचन किया है। मुझे इस बात की प्रसन्नता है कि अनेक वर्षों के गहन अध्ययन एवं परिश्रम के बाद प्रोफेसर मरडिया की यह पुस्तक अपने अंतिम प्रकाशन रूप में आ पाई है। मुझे विश्वास है कि यह पुस्तक दोनों प्रकार के पाठकों के लिये उपयोगी सिद्ध होगी। यह उन जैनों के लिये उपयोगी होगी जो आधुनिक पश्चिमी विश्व में रहते हैं और जिन्हें प्राचीन ग्रंथों को समझना और उनकी प्रासंगिकता को पुष्ट करना कठिन लगता है। यह उन जैनेतर पाठकों के लिये भी उपयोगी होगी जो अल्प-ज्ञात जैन धर्म को आत्म-ज्ञान धर्म के रूप मे केवल बुद्धिवादी जिज्ञासा के लिये ही पढ़तें हैं। जैसा मैंने पहले ही कहा है कि यह पुस्तक जैन धर्म के साहित्य के लिये एक महत्त्वपूर्ण योगदान है। मैं उनके इस सफल प्रयास पर उन्हें बधाई देता हूँ और इस पुस्तक को सभी कोटि के पाठकों के लिये अनुशंसित करता हूँ। पॉल मारेट लाउबरो विश्वविद्यालय (इंग्लैंड) Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org

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