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जैन धर्म की वैज्ञानिक आधारशिला इस अनुवाद के मुद्रण प्रक्रिया में जाने पर डा. अनिल जैन, अहमदाबाद के माध्यम से इसके एक अप्रकाशित अनुवाद का भी पता चला है। इसे श्री एन. सी. जैन, जबलपुर ने प्रायः पांच वर्ष पूर्व किया था। यह व्याख्यात्मक तो है ही, अनेक अंशो में अपूर्ण भी है। पर इसकी कुछ शब्दावली सरल भी है, जिसका मैंने अवशिष्ट अंश में उपयोग भी किया है। उनका यह कार्य मुनिश्री 108 क्षमासागर जी के निर्देश से किया गया था। इससे जैन साधुओं तथा सामान्य श्रावकों में भी इस पुस्तक की लोकप्रियता का अनुमान होता है। मैं श्री जैन के प्रयास की सराहना करता हूं।
मै आशा करता हूं कि इस अनुवाद से इसके पाठकों की व्यापकता बढ़ेगी। "प्रिंटर्स डेविल" तथा अन्य कारणों से इसमें अपूर्णतायें या त्रुटियां होना स्वाभाविक हैं। पाठकों से अपेक्षा है कि वे इस ओर हमारा ध्यान आकर्षित करेंगे जिससे भविष्य में इनमें समुचित सुधार किया जा सके।
रीवा, म.प्र. (भारत)
नंदलाल जैन
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