Book Title: Jain Dharm ki Vaignanik Adharshila
Author(s): Kanti V Maradia
Publisher: Parshwanath Vidyapith

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Page 14
________________ आमुख (द्वितीय अंग्रेजी संस्करण) यह मेरे लिये परम संतोष की बात है कि मेरी इस पुस्तक के प्रथम संस्करण का विश्वव्यापी पाठकों ने अच्छा स्वागत किया । यह यू. के. (ब्रिटेन) और यू. एस. ए. (अमरीका) में तो सर्वाधिक लोकप्रिय बनी। इस पुस्तक को नई पीढ़ी के अध्ययन के लिये सफलतापूर्वक उपयोग किया गया है और यह डी- मोन्टफोर्ट विश्वविद्यालय, लेस्टर (ब्रिटेन) में स्नातक पाठ्यक्रम हेतु पाठ्यपुस्तक के रूप में चुनी गई है। पश्चिम में जैनधर्म के प्रति निरन्तर बढ़ती जागरूकता से मुझे आशा है कि जैनधर्म के वैज्ञानिक पक्षों को समझने की प्रवृत्ति भी सतत वर्धमान रहेगी । इस पुस्तक का यह द्वितीय परिवर्धित और संशोधित संस्करण है। इसमें पहले संस्करण की अशुद्धियों को दूर किया गया है तथा अनेक परिभाषाओं को अधिक सुस्पष्ट किया गया है। इसके साथ ही, सत्य और विज्ञान के वर्धमान महत्त्व को ध्यान में रखकर जैन तर्कशास्त्र के नवें अध्याय को और भी विस्तृत किया गया है। इसके अतिरिक्त, मैंने इसमें 'उपसंहार' और जोड़ दिया है जिसमें नयी पीढ़ी के लिये इस पुस्तक के मुख्य विचारों को संक्षेपित किया गया है। इन्हें एक संगोष्ठी के रूप में भी प्रस्तुत किया जा सकता है। साथ ही, इसकी संदर्भ सूची को और भी व्यापक बनाया गया है । इस पुस्तक के प्रथम संस्करण के बाद अनेक महत्त्वपूर्ण प्रकाशन सामने आये हैं। उदाहरणार्थ, जैनधर्म और विज्ञान से सम्बन्धित अनेक पुस्तकें प्रकाशित हुई हैं: (1) मुनि अमरेन्द्र विजय (1993), (2) एल. सी. जैन (1992), ( 3 ) एन.एल. जैन (1993) और (4) मुनि नंदिघोष विजय ( 1995 ) । कपासी ने भी नई युवापीढ़ी के लिये एक मौलिक पाठ्यपुस्तक (1994) लिखी है। इसके अतिरिक्त, तत्त्वार्थसूत्र का एक नया अंग्रेजी अनुवाद ( टाटिया, जैनी आदि, 1994) प्रकाशित हुआ है जो भारत के बाहर प्रकाशित होनेवाला पहला अनुवाद है । यह अनुवाद सरल, प्रामाणिक तथा सुस्पष्ट है और इसमें चित्र और सारणियां भी हैं। एक अन्य महत्त्वपूर्ण प्रकाशन "जैन डिक्लेरेशन ऑन नेचर" (प्राकृतिक पर्यावरण पर जैन घोषणापत्र, सिंघवी, 1990 ) भी है जो विश्वव्यापी प्रकृति - परिरक्षण संघ ( Worldwide Fund for Nature) के अध्यक्ष प्रिंस फिलिप को समर्पित किया गया था ( इन दोनों ही परियोजनाओं में लेखक को भी योगदान करने का अवसर मिला था ) । इस संशोधित संस्करण में इनकी ओर भी ध्यान दिया गया है। मैं अनेक प्रेरक समीक्षकों का कृतज्ञ हूं जिन्होंने इस पुस्तक की समीक्षा कर मेरा उत्साह Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org

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