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सम्यक्चारित्र का रूप]
[७ संयम या चारित्र का अभाव माना गया इसका कारण सिर्फ यही है कि वहां कोई प्रयत्न नहीं है।
प्रश्न-दर्शन ज्ञान आदि के समान चारित्र भी एक गुण है। गुण का कभी नाश नहीं होता । यदि मुक्तात्माओं में चारित्र न माना जायगा तो इसका अर्थ होगा कि चारित्रगुण का नाश हो गया। परन्तु गुण का नाश नहीं होता, इसलिये वहां चारित्र मानना चाहिये ?
उत्तर--एक आदी में इतनी शक्ति है कि अगर कोई उसे मांकल से जकड़ दे तो वह सांकल को तोड़ सकता है । परन्तु उस समय उभे कोई सांकल से नहीं जकड़ता, इसलिये वह सांकल नहीं तोड़ रहा है । तो क्या इसका यह अर्थ है कि उसमें सांकल तोड़ने की शक्ति नहीं है ? इसी प्रकार चारित्र का काम आत्माको मुग्व प्राप्त कराना है । आमा जब दुःख में हो तो मुख प्राप्त कराता है । अगर दुःख में न हो तो सुख प्राप्त कराने की जरूरत न होने से वह नहीं करता, इससे उसका अभाव नहीं हो जाता किन्तु शक्तिरूप में उसका सद्भाव रहता ही है । वैभाविकशक्ति योगशक्ति आदि अनेक शक्तियाँ आत्मा में मानी जाती हैं, परन्तु मुक्तावस्था में उनका उपयोग नहीं होता वे शक्तिरूप में रहती हैं । ज्योंही निमित्त मिले त्योंही वे अपना काम दिखलाने लगे । यही बात चारित्र के विषय में भी समझना चाहिये । इससे मालूम होता है कि चारित्र अभावरूप नहीं है वह प्रवृत्तिनिवृत्तिरूप एक प्रयत्न है । इसलिये उसे सद्भावरूप वर्णन करना चाहिये । यदि अभावरूप में कहा भी जाय तो जैनशास्त्रों के अनुसार अभाव भावान्तरस्वरूप है । इसलिये निवृत्तिरूप चारित्र भावान्तररूप या