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जितेन्द्र बी. शाह
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परिशिष्ट १. भगवतीसूत्र
ज्ञान
आभिनिबोधिक
श्रुत
अवधि
मनःपर्यय
केवल
। । । । अवग्रह ईहा अवाय धारणा
यहाँ आगे का वर्णन रायपसेणीय-सुत्त के अनुसार पूर्ण करने का निर्देश दिया है । रायपसेणीय-सुत्त में अवग्रह के दो भेद करके आगे की पूर्ति नंदीसूत्र के अनुसार करने की सूचना दी गई है ।
२. स्थानांगसूत्र
ज्ञान
प्रत्यक्ष
परोक्ष
केवलज्ञान
नोकेवलज्ञान
आभिनिबोधिक
श्रतज्ञान
भवस्थ
सिद्धस्थ
अर्थावग्रह व्यंजनावग्रह
अवधि
मनःपर्याय
अंगप्रविष्ट
अंगबाह्य
भवप्रत्यय
आवश्यक
आवश्यक-व्यतिरिक्त
क्षायोपशमिक ... ऋजुमति
विपुलमति
।
कालिक
उत्कालिक
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