Book Title: Jain Agam Sahitya
Author(s): K R Chandra
Publisher: Prakrit Text Society Ahmedabad
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२३८
डॉ. प्रेमसुमन जैन (ख) सुसम-दुसमम्मि गामे सेसे चउसीदि-लक्खपुब्वाणि । ___ वास-तए अडमासे इगि-पक्खे उसह उम्पत्ति ।। -वही, ४/५६. (ग) ऋषभदेव-एक परिशीलन, देवेन्द्रमुनि, उदयपुर, १९६७, पृ. १३०. (घ) चेत्तबहुलट्ठमीए जातो उसभो असाढनक्खत्ते ।।
जम्मणमहो य ..वा नेयव्वो जाव घोसणय ॥ आवश्यक नियुक्ति, १८४. ५६. तृतीय कालशेषेऽसावशीतिश्चतुरुत्तरा । .
पूर्व लक्षास्त्रिवर्षांष्टमासपक्षयुतास्तदा ॥ स्वर्गावतरण' जैनमाषाढबहुलस्य तु ।
द्वितीयामुत्तराषाढनक्षत्रेऽत्र जगन्नतम् ॥ - वही सर्ग ८, श्लोक ९७-९८ ५७. तिलोय., अधि. ४, गा. ५६.
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