________________
जैन आगम साहित्य में कथाओं के प्रकार
२५७
बार-बार
गाय यांतू उदाहरणो दृष्टान्तों द्वारा भगवान् महावीर की कथाओं का वर्णन किया गया है, अतएव इसे णायाथम्मकहाओ नाम दिया गया है । मयूरी के अण्डों के दृष्टान्त द्वारा संयम के प्रति शंकित और निःशंकित भाव को व्यक्त किया गया है । दो सार्थवाह - पुत्रो को उद्यान के एक मालुका-कुंज में मयूरी के दो अण्डे मिले | अण्डों को वे अपने घर ले गये । पहला सार्थवाह - पुत्र, यह जानने के लिए कि अण्डे में से मोर का बच्चा निकलेगा या नहीं, अण्डे को हिलाता - डुलाता और कान में बजाकर देखता जिससे अण्डा निजी व हो गया और उसमें से बच्चा नहीं निकल सका । लेकिन दूसरे सार्थवाह - पुत्र को इस बात का निश्चय था कि अण्डे में से मोर का बच्चा निकल कर अवश्य बाहर आयेगा । अतएव वह न कभी अपने अण्डे को हिलाता - डुलाता और न कभी कान में बजाकर ही देखता । नतीजा यह हुआ कि पहले सार्थवाह - पुत्र का अण्डा निर्जीव होकर मर गया जबकि समय बीतने पर दूसरे साथ वाह - पुत्र के अण्डे में से मोर का बच्चा पैदा हुआ। बच्चे के बड़े होने पर सार्थ वाह - पुत्र ने उसे नृत्यकला की शिक्षा दी । इस दृष्टान्त द्वारा संयम को निःशक्ति भाव से पालने की शिक्षा दी गयी है (३) । आगे चलकर कूर्म नामक चौथे अध्ययन में दो कछुओं के दृष्टान्त द्वारा अपनी इंद्रियों पर निग्रह रखते हुए स्वच्छन्द भाव से आचरण न करने का उपदेश है। रोहिणी नामक सातवें अध्ययन में उज्झिका (त्याग देने वाली ), भोगवती ( भोगने वाली ), रक्षिका (रक्षा करने वाली ) और रोहिणी ( पैदा करने वाली ) नामक चार पतोहुओं के रूपक से पांच महाव्रतों को त्याग देने वाले, आजीविका के लिए उनका उपभोग करने वाले, उनकी रक्षा करने वाले और उनका संवर्धन करने वाले श्रमण-निर्ग्रथों को उपदेश दिया गया है । ज्ञातव्य है कि रोहिणी की कथा लोक-प्रचलित लोककथा पर आधारित है । बाइबिल की सेंट मैथ्यू (२५) और सेण्ट ल्यूक (१९) की कथा से इसकी तुलना की जा सकती है। बौद्धों के मूल सर्वास्तिवाद के विनयवस्तु ( पृ० ६२ ) में भी यह कथा कुछ रूपान्तर के साथ संग्रहीत है ।
Jain Education International
For Private & Personal Use Only
www.jainelibrary.org