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डॉ. जगदीशचन्द्र जैन प्रयत्नशील था । जैन आगम साहित्य में ऐसे कितने ही लघु आख्यान कहे गये हैं जिनमें उपमा, रूपक, दृष्टान्त, उदाहरण, प्रश्न-उत्तर, शंका-समाधान, संवाद आदि के माध्यम से धर्मोपदेश प्रस्तुत किया गया है।
सूत्रकृतांग सूत्र में ( प्रथम श्रुतस्कंध, ६, ३६६-३७५ ) भगवान महावीर का स्तवन करते समय, जैसे वृक्षों में शाल्मलि, वनो में नंदन, शब्दों में मेघगर्जन, तारों में चन्द्रमा, गंधों में चंदन, समुद्रों में स्वयं भूरमण, नागों में धरणेन्द्र, हाथियों में ऐरावत, मृगों में सिंह, नदियों में गंगा, पक्षियों में गरुड, पुष्पों मे अरविंद, दानों में अभयदान, सत्य वचनों में अनवद्य वचन, तपों में ब्रह्मचर्य को श्रेष्ठ कहा गया है, उसी प्रकार ज्ञातृपुत्र महावीर को सर्वश्रेष्ठ प्रतिपादित किया गया है । ___ आइए, एक रूपक पर दृष्टिपात करें। यहां रूपक द्वारा मोह से आच्छन्न संसारी जीव की दशा पर प्रकाश डाला गया है ।
(आचारांग, १-६-१-१७८ ) (क) किसी कछुए का मन किसी सरोवर में संलग्न है । वह सरोवर
कमल-पत्रों से आच्छन्न है, अतएव वह कछुआ उन्मुक्त आकाश को देखने से वंचित रह जाता है । यहां संसार को एक सरोवर कहा गया है जिसमें कछुए के रूप में संसारी जीव निवास करता है । जैसे सरोवर कमल-पत्रों से ढंका हुआ है, वैसे ही संसार कर्मो से ढंका है जिससे जीव सन्मार्ग के दर्शन नहीं कर पाता । जिस प्रकार वृक्ष अपने स्थान को नहीं छोडते, उसी प्रकार संसारी जीव अनेक प्रकार के कुलों में जन्म लेते रहने पर, रूप आदि विषयों में आसक्त होकर करुण विलाप करते हैं । अंत में उन्हें
मोक्ष की प्राप्ति नहीं होती। वे अपने ही स्थान पर स्थिर रहते हैं । ज्ञाताधर्मकथा जिसे णायाधम्मकहा, णाहधम्मकहा अथवा णाणघम्मकहा भी कहा गया है, जैन कथा–प्रकारों की दृष्टि से महत्त्वपूर्ण है। इस कथासंग्रह में
(ख)
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