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डॉ० जगदीशचन्द्र जैन
आगम- साहित्य में उल्लिखित बहुत-सी कथा - कहानियां ऐसी हैं जिन्हें 'वृद्धसंप्रदाय', 'पूर्व प्रबंध' अथवा 'अनुश्रुनि' गम्य कहा गया हैं । उदाहरण के लिए अतिकृदशा (६) में उल्लिखित राजगृह के अर्जुनक माली और मुद्गरपाण यक्ष की कथा को वादिवेताल शांत्याचार्यने उत्तराव्ययन की व्याख्या में 'वृद्धसंप्रदाय' गम्य कहा है ।
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आगम ग्रंथों पर उत्तरकालीन जैन आचार्यों द्वारा लिखी गयी व्याख्याओं में कथा - साहित्य खूब ही पल्लवित हुआ । नियुक्ति - साहित्य ( ईसवी सन् के ५वीं - ६टी शताब्दी के पूर्व ) में कथानकों, आख्यानों, उदाहरणों, दृष्टान्तों और उपमानों का प्राकृत गाथाओं के रूप में उल्लेख मात्र किया गया है । यह साहित्य इतना सांकेतिक एवं संक्षिप्त है कि बिना व्याख्या के मुश्किल से बोध गम्य होता है । उत्तराव्ययन नियुक्ति (८३३ -C ३६) में चोल्लक (भोजन), पाश, धान्य, द्यूत, रत्न, स्वप्न, चक्र, चर्म, जुग और परमाणु के दृष्टान्तों द्वारा मनुष्य जन्म की दुर्लभता का उल्लेख है । आवश्यक नियुक्ति (२३६) में गाय, चन्दनभेरी, चेटी, श्रावक, बधिर, गोह और टंकण देशवासी म्लेच्छ वणिकों के दृष्टान्तों द्वारा योग्य और अयोग्य शिष्यों के लक्षणों का प्रतिपादन है । कितने ही धार्मिक एवं पौराणिक आख्यान यहां संग्रहीत हैं जिन पर उत्तरकालीन जैन विद्वानों द्वारा स्वतंत्र कथा - ग्रंथों का निर्माण किया गया । औत्पत्तिकी, वैनयिकी, कार्मिक एवं पारिणामिकी नामक चार प्रकार की बुद्धियों के रोचक उदाहरण दिये गये हैं जिनमें लोक-प्रचलित कथाओं का समावेश है ।
नियुक्ति साहित्य के अतिरिक्त, संग्रहणी, भाष्य, महाभाष्य, चूर्णी, टीका, विवृति, विवरण, वृत्ति, दीपिका, अवचूर्णी, भाषाटोका, वचनिका आदि जो विपुल साहित्य आगम ग्रंथों पर लिखा गया, उसमें उल्लिखित कथाकहानियों के प्रकार अध्येताओं के लिए अत्यन्त महत्वपूर्ण हैं ।
कथाओं के विविध प्रकार :
महावीर द्वारा प्रतिप्रादित निर्मंथ धर्म निवृत्ति प्रधान धर्म रहा है, अतएव
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