Book Title: Jain Agam Sahitya
Author(s): K R Chandra
Publisher: Prakrit Text Society Ahmedabad

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Page 286
________________ २६२ डॉ. जगदीशचन्द्र जैन वतीलंभ, पृ० ३) में उल्लेख है : जैसे कोई वैद्य अमृत-रूप औषध पान से पराङ्मुख किसी रोगी को मनोभिलषित औषधपान के बहाने अपनी औषध का सेवन कराता है, उसी प्रकार कामकथा के श्रवण करने में दत्तचित्त श्रोताओं के मनोरंजन के हेतु, शंगारकथा के बहाने से मैं अपने धर्म का व्याख्यान करता हूं। गुणाढ्य की नष्ट हुई अनुपम कृति, पैशाची प्राकृत में निर्मित 'वडुकहा' के आधार पर रचित संघदासगणि वाचक कृत वसुदेवहिडि को शगारी कथा कहना ही उचित होगा। यहां वासुदेव कृष्ण के पिता वसुदेव के एक से एक अनुपम सुंदरियों के साथ विवाह करने का रोमांचकारी वर्णन प्रस्तुत किया गया है। ___भगवान महावीर ने सर्वसाधारण के लिए बाल, वृद्ध एवं स्त्रीजनों के लिए मगध में बोली जानेवाली मागधी अथवा अर्धमागधी बोली में, सर्व जन कल्याणकारी अपने निम्रन्थ प्रवचन का उपदेश दिया था। उनके उपदेश सरल और बोधगम्य थे जिन्हें वे लोक-प्रचलित उपमा, दृष्टान्त, उदाहरण, रूपक, वार्ता, आख्यान आदि द्वारा रोचक एवं मनोरंजक बनाने का प्रयत्न किया करते थे। लोक-प्रचलित कथा-कहानियों पर आधारित इन उपदेशों में कथानक-रूढ़ियों (मोटिफ) का भी समावेश हुआ है जो इन कथाओं की समृद्धि का द्योतक है । श्रमण भगवान ज्ञातृपुत्र महावीर के इन उपदेशों का संग्रह आगम- साहित्य में किया गया है अतएव इस साहित्य में हमें कथाओं के अनेक प्रकार उपलब्ध होते हैं-दृष्टान्तकथाएं, लघुकथाएं, नीतिकथाएं, आख्यान, वार्ताएं आदि । आगम साहित्य की इन कथाओं को आधार मानकर जैसा कहा जा चुका है, उत्तरकालीन जैन विद्वानों ने इनको विस्तृत रूप प्रदान किया, स्वतत्र कथाप्रथों एवं अनेक महत्वपूर्ण कथाकोशों की रचना कर जैन कथा साहित्य के भंडार को समृद्ध बनाया। ___ पंचतंत्र के सुप्रसिद्ध अध्येता, अनेक जैन कथा ग्रंथों के जर्मन-अनुवादक एवं · आन द लिटरेचर आव श्वेताम्बराज आव गुजरात ' (लाइप्त्सिग, १९२२) Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org

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