Book Title: Jain Agam Sahitya
Author(s): K R Chandra
Publisher: Prakrit Text Society Ahmedabad
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૨૫૨
નીલાંજના એસ. શાહ २०. ज्ञाध, पृ. १३६. २१. आदिपर्व', १५५, ४१-४३. २२. Cowell E. B., op. Cit. २३. शाध. पृ. १३७-१५१. २४. आवश्यकसूत्र - हारिभद्रीय वृत्ति, द्वितीय भाग, (मुंबई, १९१६) पृ. ३ ४४;
उत्तराध्ययनसूत्र-शांतिप्रिरचिता वृत्ति (मु'बई, १९१६), पृ. १४९ २५. कल्पसूत्र - लक्ष्मीवल्लभरचिता वृत्ति, (मुबई १९१८) पृ. ४३-४७. २६. आदिपर्व', १७९.१६. २७. वही, १७६. १-११ २८. वही, १७७ २९. वही, १७९.२२ ३०. बही, १८..१८१ ३१. वही, १८७.२५ ३२. वही, १८७.२७. ३३. वही, १८८. १५-१६; १८९.२७-४९. ३४. Cowell, E.B. op. Cit. ३५. ज्ञाध. पृ. १८६. ३६. आदिपर्व', २१३. ५८-७०. ३७. ज्ञाध. प. १४८. ३८. ज्ञाघ ५२नी धासीसासनी व्याज्या,(२२४ अट, १८९३). ४२१.४२५. ३९. ज्ञाध. पृ. १५५-१७५. ४०, रानीainनस, “हैन मागम सत्यम श्री अनेद्वा२४॥",
साभाच्य, न्यु-भाय, १८८५, पृ. १८१-१८८. ४१. ज्ञाध, प. १७९. ४२. कल्पसूत्र, लक्ष्मीवल्लभवृत्ति, पृ. ४४०;
कल्पसूत्र, विनयविजयवृत्ति (मुबई, १९३३), प. २३;
कल्पसूत्र, स'घविजयवृत्ति (अमदावाद, १९३५), प. २४. ४३. प्रश्नव्याकरणसूत्र-अभयदेववृत्ति, (मुबई, १९३३) प. २९४;
प्रश्नव्याकरणसूत्र, ज्ञानविमलवृत्ति (अमदावाद, १९३७), प. ८६;
आचारांगचूर्णि (रतलाम, १९४१), पृ. १८७. ४४. दशकालिक चूर्णि पु. १०६;
दशवकालिक हारिभद्रीय वृत्ति (मुबई, १९००), पृ. १२०
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